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________________ १४ उपासकाध्ययन सम्पूर्ण किया था, उसी सन्में पुष्पदन्तने अपने महापुराणकी रचनाका प्रारम्भ किया था। महापुराणको उत्थानिकामें पुष्पदन्तने लिखा है, "जं कहमि पुराणु पसिद्धणामु, सिद्धस्थवरिसि भुवणाहिरामु । उब्बद्ध जूडु भूमंगमीसु, तोडेप्पिणु चोडहो तणउ सीसु । भुवणेक्करामु रायाहिराउ, जहिं अच्छह तुडिगु महाणुमाउ। तं दीणदिण्णधणकणयपयरु, महि परिभमंतु मेपाडिणयरु।" अर्थात् सिद्धार्थ संवत्सरमें ( सोमदेवने भी इसी संवत्सरका उल्लेख किया है ) जब चोलराजका सिर, जिसपर केशोंका जूड़ा ऊपरको ओर बँधा था, काटकर राजाधिराज तुडिग (कृष्णराज) मेपाडि (मेलपाटी) नगरमें वर्तमान हैं, मैं प्रसिद्ध नामवाले पुराणको कहता हूँ। यद्यपि 'सोमदेव कृष्णराज तृतीयके समकालीन थे तथापि उन्होंने अपना ग्रन्थ राष्ट्रकूटोंकी राजधानी मान्यखेटमें नहीं रचा; किन्तु एक अप्रसिद्ध स्थान गंगधारामें रचा, जो सम्भवतया कृष्णराजके सामन्त चालुक्यवंशो अरिकेसरीके ज्येष्ठ पुत्र बागराजकी राजधानी थी। गंगधाराके विषयमें कुछ भी ज्ञात नहीं है, किन्तु वह धारवाड़ जिलेमें या उसके आस-पास कहीं होना चाहिए। शायद धारवाड़के विलकुल निकट जो गंगवाटी नामक स्थान है वही गंगधारा हो। धारवाडके दक्षिण-पश्चिममें उत्तर कनारा जिलेमें गंगवाली नामकी एक नदी भी है। जिस राजाके राज्यमें सोमदेवने अपना काव्य समाप्त किया था उसका नाम यद्यपि मुद्रित प्रतिमें तथा हस्तलिखित प्रतिमें वागराज पाया जाता है, किन्तु कुछ हस्तलिखित प्रतियोंमें वाद्यराज और वाद्यगराज भो मिलता है। किन्तु शुद्ध नाम वडिग प्रतीत होता है जिसका संस्कृत रूप वाद्यराज या वाद्यगराज कर लिया गया है। सोमदेव-सम्बन्धी एक शिलालेख ब्रिटिशकालीन हैदराबाद राज्यके परभनी नामक स्थानसे एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है। जिसपर अंकित संस्कृत लेखमें यशस्तिलककी रचनासे सात वर्ष पश्चात् सोमदेवको दिये गये दानका ही केवल उल्लेख नहीं है, किन्तु उन चालुक्य सामन्तोंको बंशावली भी दी है जिनके प्रदेशमें सोमदेवने ग्रन्थरचना की थी। वंशावली इस प्रकार है, युद्धमल्ल १, अरिकेसरी १, नरसिंह १, (+ भद्रदेव), युद्धमल्ल २, बड्डिग १, युद्धमल्ल ३, नरसिंह २, अरिकेसरी २, भद्रदेव , अरिकेसरी ३, बड्डिग २, ( वाद्यग ) और अरिकेसरी ४। इनमें से अरिकेसरी द्वितीय उस पम्प कविका आश्रयदाता था, जिसने सन् ९४१ में कनडीमें 'भारत' रचा और बडिग द्वितीय या वाद्यगक राज्यकालमें ९५९ ई० में सोमदेवने अपना काव्य रचा। १. शकनृपकालातीतसंवत्सरशतेष्वष्टस्वेकाशीत्यधिकषु वातेषु अंकतः ( ८८1) सिद्धार्थ संवत्स रान्तर्गतचैत्रमासमदनत्रयोदश्यां पाण्ड्य-सिंहल-चोल-चेरमप्रभृतीन महीपतीन् प्रसाध्य मेलपाटी प्रवर्धमानराज्यप्रमावे श्री कृष्णराजदेवे सति तत्पादपद्मापजीविनः समधिगतपंचमहाशब्दमहासामन्ताधिपतेश्चालुक्यकुलजन्मनः सामन्तचूडामणे: श्रीमदरिंकसरिणः प्रथमपुत्रस्य श्रीमवद्यग राजस्य लक्ष्मी-प्रवर्धमानवसुधारायां गंगधारायां विनिर्मापितमिदं काव्यमिति । २. "यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कल्चर"-पृ. ४ ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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