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________________ उपासकाध्ययन रही है ऐसा ज्ञात होता है। उदाहरणके लिए, राजतरंगिणीम' लिखा है कि कश्मीरके एक प्राचीन राजा मेघवाहनने अपने राज्यमें पशुवधपर रोक लगा दी थी, अतः उसके समयमें वैदिक यज्ञमें घृतमय पशुको तथा भूतबलिमें आटेसे बनाये गये पशुको बलि दी जाती थी। कहा जाता है कि उत्तर कालमें माध्वाचार्यने वैदिक यज्ञोंमें जीवित पशके बदले में उसके चावलके आटेसे बनाये गये प्रतिरूपकी बलि देनेका सुधार चालू किया था। यशाधरकी कथासे, यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन धर्म पशुओंकी जीवनहीन प्रतिकृतियोंको भी बलिके विरुद्ध रहा है और इस तरह वह पशुबलिके प्रत्येक रूपका विरोधी है। दूसरी बात यह है कि अहिंसा और हिंसाका मुख्य सम्बन्ध कर्ताके 'अभिनिवेश से है। चतुर्थ आश्वासमें जब यशोधर चण्डिकाके सामने आटेसे ब का बलिदान करने के लिए सहमत हो जाता है तो वह बलिदान करते समय देवोसे प्रार्थना करता है कि "सब जीवोंके मारनेपर जो फल मुझे मिलना चाहिए वही फल मुझे इस आटेके मुर्गेका वध करनेपर मिले।" यही 'अभिनिवेश' है। सोमदेवने कहा है, "विद्वज्जन पुण्य और पापके कामों में 'अभिनिवेश' को मुख्य स्थान देते हैं। सूर्यके तेजको तरह बाह्य इन्द्रियां तो शुभ और अशुभ बस्तुओंमें समान रूपसे गिरती हैं, किन्तु इतने मात्रसे ही उस व्यक्तिको पुण्य और पापका बन्ध नहीं होता" अर्थात् किसी कार्यके नैतिक मूल्यका निर्धारण कर्ताके अभिप्रायसे किया जाता है । बाह्य प्रवृत्तिसे नहीं। आगे सोमदेवने कहा है, "जिस मनुष्यका मन वचन और काय तथा अन्तरात्मा शुद्ध है, वह हिंसक होनेपर भी हिंसक नहीं है।" सोमदेवने 'अभिनिवेशके स्थानमें 'अभिध्यान' शब्दका प्रयोग करते हुए उक्त कयनको एक दृष्टान्त-द्वारा स्पष्ट करते हुए कहा है, "एक मछलीमार मछली मारनेके अभिप्रायसे नदीमें जाल डालकर बैठा है, यद्यपि उस समय वह मछली नहीं मारता फिर भी वह पापी है, क्योंकि उसका ध्यान मछली मारने में है। इसके विपरीत एक किसान खेत जोतता है और उससे अनेक प्राणियोंका घात भी होता है, किन्तु वह पापी नहीं है, क्योंकि उसका ध्यान अन्नोत्पादनमें है। अतः ऐसी कोई क्रिया नहीं जिसमें हिंसा नहीं होती किन्तु भावको मुख्यता और गौणतासे क्रियाके फलमें अन्तर हो जाता है।" सोमदेवने अभिनिवेश और अभिध्यानके स्थानमें अभिसन्धि और संकल्प शब्दका भी प्रयोग किया है । वह लिखते हैं, “पाषाणका देवता बनाकर और उसमें देवत्वके संकल्पको प्रतिष्ठा करनेपर यदि कोई उसकी अवज्ञा करता है तो क्या वह पापी नहीं है ? संकल्पसे ही गृहस्थ मनि बन जाते हैं और मनि गहस्थ बन जाते हैं। उत्तर मथुरा में अहंद्दास श्रेष्ठी रात्रिके समय प्रतिमायोगमें स्थित था। देवोंने उसको परीक्षाके १. 'तस्य राज्ये जिनस्येव मारविद्वेषिणः प्रभोः। क्रतो घृतपशुः पिष्टपशुर्भूतबलावभूत् ॥ -राजतरंगिणी श्लो० ३, ७। २. 'सर्वेषु सत्त्वेषु हतेषु यन्मे भवेत् फलं देवि तदत्र भूयात् ।- अाश्वास ४, पृ० १६३ । ३. 'अभिनिवेशं च पुनः पापपुण्यक्रियास प्रधानं निधानमामनन्ति मनीषिणः । बाह्यानीन्द्रियाणि तपनतेजांसीव शुभेष्वशुभेषु च वस्तुषु समं विनिपतन्ति । न चैतावता भवति तदधिष्ठातुः कुशलेन चादृष्टेन सम्बन्धः ।-आश्वास ४, पृ. १३६ । ४. ५. सो० उपा० श्लो० २५१, ३४००-३४३ । ६. "संकल्पोपपन्न प्रतिष्ठानि च देवसायुज्यभाञ्जि शिलाशकलानि किमस्यासादयन् पुरतो न भवति लोके पञ्च महापातकी ।"-आ. ४, पृ० १३६ । ७. “संकल्पेन च भवन्ति गृहमेधिनोऽपि मुनयः ।""मुनयश्च गृहस्थाः ।" ८. "उत्तरमथुरायां निशाप्रतिमास्थितास्त्रिदिवसूत्रितकलत्रपुत्रमित्रोपद्रवोऽत्यकस्वभावनमानसोऽहंदासः' कुसुमपुरे चरादाकर्णितसुतसमरस्थितिरतापनयोगयुतोऽपि पुरुहूतदेवर्षिः ।" आ० ४, पृ० १३७ ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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