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________________ २७३] उपासकाण्ययन 'कक्षमनुगताप्तकं रलसप्तकं निधाय विधाय च जलयात्रासमर्थमर्थमेकवर्णप्रजाप्रलापसुवर्णद्वीपमनुससार। पुनरगण्यपण्यविनिमयेन तत्रत्यमचिन्त्यमात्माभिमतवस्तुस्कन्धमादाय 'प्रत्यावर्तमानस्यादरसागरावसानस्याकाण्डप्रचण्डबलादनिलात्परिवर्तितपोतपात्रस्य यद्भविष्यत्तयाँ आयुषः शेषत्वात्तस्यैकस्य प्रमादफलकावलम्बनोद्यतस्य कण्ठप्रदेशप्राप्तजीवितस्य कथंकथमपि क्षणदायाः क्षयिणि चरमयामक्षणेऽधिरोधोपलब्धिरभवत् ।। १ ततोऽसौ सुखैधितशरीरत्वादपाराकूपारक्षारवारिवशवशिकाशयधिरायापचितमूर्योदयः करप्रचारचूर्णितचक्रवाकचिन्तामणौ प्रागचलचूलिकाचक्रवालचूडामणौ कमलिनीकुलविकासाहितहंसवासिताशमणि विश्वकर्मणि देर नलिनान्तरालरुचिरे लोचनगोचरे संजाते सति बान्धवजनमरणावविणे संद्रवणाचातीवान्तर्मनस्तयों छातच्छायकायः पेटंचरचेलचीरीनिचिताङ्गशेकेटिः कर्पटिः परपस्त्योपास्तिनिरस्ताभिमानावनिरवैतनिः सन् क्रमेण सिंहपुरं नगरमागत्य गीर्मात्रावसेयपूर्वपर्यायस्तं महामोहरसोत्सारितप्रीति" श्रीभूतिमभिक्षानाधिकवाक्यो माणिकसप्तकमयाचत । हाथमें उसकी पत्नीके सामने अत्यन्त मूल्यवान् सात रल सौंपकर जल-यात्रामें समर्थ एक जहाजके द्वारा सुवर्णद्वीपको चल दिया । वहाँ बहुत-सा माल बेचकर तथा उसके बदलेमें वहाँकी बहुत-सी मनपसन्द वस्तुएँ खरीद कर वह घरके लिए लौटा । जब समुद्रका किनारा थोड़ी दूर रह गया, बड़ी जोरका तूफान आ गया और उससे उसका जहाज उलट गया। दैववश आयु शेष होनेसे उसे जहाजका टूटा हुआ एक लकड़ीका पटिया मिल गया और उसने उसे पकड़ लिया। उसे पकड़े-पकड़े जब उसके प्राण कण्ठमें आ गये तब जिस किसी तरह रात्रिका अन्तिम पहर बीतते-बीतते उसे समुद्रका किनारा मिल गया। एक तो वणिकपुत्र जन्मसे ही सुखमें पला था दूसरे अपार समुद्रके खारी पानीने उसे धनशून्य ही नहीं संज्ञाशन्य भी बना दिया था। अतः किनारेपर लगकर वह बहुत देर तक मूर्छित पड़ा रहा । जब सूर्योदय हुआ तो उसकी आँख कमलोंकी तरह कुछ खुलीं । बन्धुजनोंके मर जाने और धनके नष्ट हो जानेसे उसका मन बहुत दुखी था और मुख पीला पड़ गया था। जिस किसी तरह फटे हुए वस्त्रके टुकड़ेसे अपने शरीरको ढाँककर वह वहाँ से उठा। दूसरोंकी चाकरी करते-करते उसका सब अभिमान जाता रहा । अन्तमें आजीविकाके न मिलनेसे घूमता-घूमता सिंहपुर पहुंचा और श्रीभूतिके पास जाकर उससे अपने सात रत्न माँगे । इस समय उसकी दशा बिलकुल हीन थी। उसकी पूर्व दशाको उसके बचनसे ही जाना जा सकता था । अन्य कुछ प्रमाण उसके पास नहीं था। १. बहुमूल्य । २. पूर्वपुरुषसंचितम् । ३. समूहं । ४. व्याधुटितस्य । ५. देवालम्बनपरतया। ६. त्रुटित । (भग्नप्रवहणकाष्ठ । ७. रात्रेः । ८. समुद्रतटप्राप्तिः। ९. वर्धित । १०. शून्यचित्तः । ११. किरण । १२. चिन्ता एव मणिः । १३. मण्डल । १४. स्त्री। १५. सूर्ये । १६. विकसत्कमल । १७. धनविनाशात् । १८. अतीवार्तमनस्तया-मु०। मानसदुःखेन । १९. कृश । २०. जीर्णवस्त्र । २१. अङ्गमेव शकटिः। २२. कटिमात्रवस्त्रः दरिद्रः। २३. परगहसेवा । २४. वर्तनि:-आजीविका । २५. त्यक्तस्नेहम् । २२
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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