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________________ ३७६ षड्दर्शन समुशय भाग-१, परिशिष्ट - ११, गाथावर्णानुक्रमिका श्लोक पापं तद्विपरीतं. पायूपस्थ पिव खाद च पृथ्वी जल पृथ्व्यादि पूर्ववच्छेष पंचविंशति पंचेन्द्रियाणि प्रकृतिवियोगो प्रतिज्ञाहेतु प्रत्यक्षमनुमानं प्रत्यक्षमनुमानं प्रत्यक्षं कल्पना नं. | श्लोक यञ्च सामान्य यथा काकादि येनोत्पाद रुपाणि पक्ष रुपात्तेजो रोलंवगवल लोकायतमते लोकायता विजिगिषु व्यवसायात्मकं शाव्दमाप्तो शाब्दं शाश्वत पड्-दर्शन सत्त्वं रज सद् दर्शनं समुदेति संवरस्तन्निरोध साध्यवृत्ति सांख्या निरी सुरासुरेंद्र स्पर्शनं रसन स्पर्शरस हेत्वाभासा प्रत्यक्षं च प्रमाणं च प्रमाणपंचकं प्रमाणे द्वे च प्रसिद्धवस्तु वद्धस्य कर्मणो वुद्धिः सुख वौद्धं नैयायिक वौद्ध राद्धांत य इहायुत * * *
SR No.022413
Book Titleshaddarshan Samucchay Satik Sanuwad part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanyamkirtivijay
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2005
Total Pages436
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size40 MB
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