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श्लोक ३१ ] पुरुषार्थसिद्धय पायः।
. । ४ अनुमान-सङ्कतों ( चिह्नों) से पदार्थके निश्चय करनेको अनुमान कहते हैं, जैसे किसो पर्वतमेंसे धूम निकलते हुए देखकर निश्चय करना कि यहाँ अग्नि है।
५ प्रागम-प्राप्त-वचनोंके निमित्तसे पदार्थके निश्चय करनेको पागम कहते हैं । जैसे शास्त्रोंसे लोकादिकका स्वरूप जानना।
नय
ऊपर कहे हुए प्रमाणके अंश को हो नय कहते हैं, अर्थात् प्रमाणद्वारा ग्रहण किये हुये पदार्थके एक एक धर्मको मुख्यतासे जो अनुभव कराता है वह नय है। इसके दो भेद हैं, पहला द्रव्याथिकनय और दूसरा पर्यार्थिकनय ।।
द्रव्याथिकनय-जो नय द्रव्यकी मुख्यतासे पदार्थका अनुभवन करावे उसे द्रव्याथिकनय कहते हैं । इसके ३ उत्तर भेद हैं । १ नैगम, २ संग्रह और ३ व्यवहार ।
१. नैगम-संकल्पमात्रसे पदार्थके जाननेको नैगम नय कहते हैं, जैसे कोई मनुष्य कठती (काठका वर्तन विशेष) के लिये काष्ठ लानेको जाता था उससे किसोने पूछा कि भाई, कहाँ जाते हो ? उसने कहा कि कठौतीके लिये जाता हूं। यहाँपर विचारना चाहिये कि यद्यपि जहाँ वह जाता है, वहाँ उसे कठौती नहीं मिलेगी, परन्तु उसके चित्तमें यह है कि मैं काष्ठ लाकर उसकी कठौती हो बनाऊँगा, इसका कहीं भूत और कहीं भविष्यत्काल विषय है।
२. संग्रह-सामान्यरूपसे पदार्थके ग्रहण करनेको संग्रह कहते हैं। जैसे छह द्रव्योंके समूहको द्रव्य कहना।
३ व्यवहार-सामान्यरूपसे कहे हुए विषयको विशेष कहना, इसे व्यवहार कहते हैं, जैसे द्रव्यके ६ भेद करना।
पर्यायाथिकनय-जो नय द्रव्यके स्वरूपसे उदासीन होकर पर्यायकी मुख्यता पर पदार्थका अनुभवन कराता है, उसे पर्यायाथिकनय कहते हैं-इसके १ऋजुसूत्र, २ शब्द, ३ समभिरूढ और ४ एवंभूत ये चार भेद हैं।
१ ऋजुसूत्र-जिस नयसे वर्तमान पर्यायमात्रका ग्रहण किया जावे, उसे ऋजुसूत्रनय कहते हैं। जैसे देवको देव और मनुष्यको मनुष्य कहना।
२ शब्द-व्याकरणादि द्वारा शब्दके लिङ्ग वगैरहके द्वारा परस्परके वाच्य पदार्थोंमें भेद न मानना उसे शब्दनय कहते हैं।
३ समभिरूद्ध-पदार्थमें मुख्यतासे एक अर्थके प्रारूढ करनेको समभिरूढ कहते हैं, जैसे 'गच्छतीति गौः' इस वाक्यसे जो गमन करे बही गाय होती है, परन्तु सोती हुई व बैठी हुईको भी गाय कहना यह समभिरूढनयका विषय है।
४ एवंभूत-वर्तमान किया जिस प्रकार हो उसी प्रकार कहनेको एवंभूत कहते हैं, अर्थात् जिस समय चलती हुई हो उसी समय गाय कहना, सोती हुई व बैठी अवस्था में गाय नहीं कहना।