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५-सकलचारित्रव्याख्यानतपके दो मैद-बाह्य और प्राभ्यन्तरषट् प्रावश्यकतीन गुप्तिपांच समितिदशलशण धर्मबारह भावनायें-और उनके भेदोंका वर्णन बाईस परीषह " प्रात्माका रागसे बन्ध
८५ | चार प्रकारके बन्धका स्वरूप| सम्यक्त्व और चारित्र बन्धके कर्ता नहीं किन्तु
उदासीन कारण हैं- १०२ रत्नत्रय ही मोक्षका कारण है
१०२ जैनीनीति स्याद्वाद-अनेकान्तका स्वरूप- १०॥ ग्रन्थकारकी लघुता
१०४ | परिशिष्ट १-श्लोकानुक्रमणिका ॥ २-उद्ध तकी ,
१०१ ६५ | सूची
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