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________________ [ ४५ ] अर्थ- सूने घर में, वृक्ष की जड़ (खोखल) में, उपवन में, स्मशान में, पहाड़ की गुफा में, पहाड़ की चोटी पर, भयानक वन में और वसतिका में दीक्षा - सहित मुनि रहते हैं ॥४२॥ स्वाधीन मुनियों के निवास रूप तीर्थ, उनके नाम के अक्षर रूप वच, उनकी प्रतिमारूप चैत्य, प्रतिमाओं की स्थापना का स्थान रूप आलय (मन्दिर) और कहे हुये आयतनादि के साथ जिनभवन (अकृत्रिम चैत्यालय) आदि को जिनशासन में जिनेन्द्रदेव वैद्य अर्थात् मुनियों के विचारने योग्य पदार्थ कहते हैं ॥ ४३ ॥ पांच महाव्रतसहित, पांच इन्द्रियों को जीतने वाले, इच्छारहित तथा स्वाध्याय और ध्यानसहित श्रेष्ठ मुनि ऊपर कहे हुए स्थानों को निश्चय से चाहते हैं ॥४४॥ गाथा-गिहगंथमोहमुक्का बावीसपरीसहा जियकसाया। पावारंभविमुक्का पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥४॥ छाया-गृहप्रन्थमोहमुक्ता द्वाविंशतिपरीषहा जितकषायाः। .पापारंभविमुक्ता प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥४॥ । अर्थ-जो घर के निवास और परिग्रह के मोह से रहित है, जिसमें बाईस परीषह सही जाती हैं, कषायों को जीता जाता है और पाप के आरम्भ से रहित है, ऐसी दीक्षा जिनदेव ने कही है ॥४।। गाथा-धणधएणवत्थदाणं हिरएणसयणासणाइ छत्ताई। कुदाणविरहरहिया पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥४६॥ छाया-धनधान्यवस्त्रदानं हिरण्यशयनासनादि छत्रादि । कुदानविरहरहिता प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ॥४६॥ अर्थ-जो धन (गाय), धान्य (अन्न), वस्त्रादि के दान, सोना, चांदी, शय्या, आसन, छत्र, चमर आदि खोटे दान से रहित है, ऐसी दीक्षा कही गई है ॥४६॥ गाथा-सत्तमित्ते य समा पसंसणिहा अलद्धिलद्धि समा। तणकणए समभावा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥४७॥
SR No.022411
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasdas Jain
PublisherBharatvarshiya Anathrakshak Jain Society
Publication Year1943
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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