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________________ लब्धिसारः । एवं संखेजेस ठिदिबंध सहस्सगेसु तीदेसु । संवसमदे तत्तो इत्थि च तहेव उवसमदि ॥ २५५ ॥ एवं संख्येयेषु स्थितिबंधसहस्रकेषु अतीतेषु । ढोपशांते ततः स्त्रीं च तथैव उपशमयति ।। २५५ ॥ अर्थ — इसप्रकार संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीतनेपर अन्तर्मुहूर्तकालकर नपुंसक वेदका उपशम होता है उसके वाद उसीतरह अन्तर्मुहूर्त कालसे स्त्रीवेदको उपशमाता है ॥२५५॥ थीयद्धा संखेज दिभागेपगदे तिघादठिदिबंधो । संखतुवं रसबंधो केवलणाणेगठाणं तु ॥ २५६ ॥ स्त्री अद्धा संख्येयभागेपगते त्रिघातिस्थितिबंधः । संख्यातं रसबंधः केवलज्ञानैकस्थानं तु ॥ २५६ ॥ ७३ अर्थ — स्त्रीवेद उपशमानेके कालका संख्यातवां भाग वीतजानेपर मोहका स्थितिबन्ध औरोंसे कम संख्यातहजार वर्षमात्र होता है उससे संख्यातगुणा तीनघातियोंका उससे असंख्यातगुणा पल्यका असंख्यातवां भागमात्र नामगोत्रका उससे कुछ अधिक सातावेदनीया स्थितिबन्ध होता है । और इसीकालमें केवलज्ञानावरण केवलदर्शनावरणके विना अन्यघातियाओंका लतासमान एकस्थानगत ही अनुभागबन्ध है || २५६ ॥ थीउवसमिदाणंतरसमयादो सत्त णोकसायाणं । उवसमगो तस्सद्धा संखज्जदिमे गदे तत्तो ॥ २५७ ॥ स्त्री उपशमितानंतरसमयात् सप्तनोकषायाणाम् । उपशामकः तस्याद्धा संख्याते गते ततः ॥ २५७ ॥ अर्थ—स्त्रीवेद उपशमानेके बाद के समय से लेकर पुरुषवेद और छह हास्यादि ऐसे इन सातप्रकृतियोंको उपशमाता है । उनके उपशमानेका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है । उसके संख्यातवें भाग वीतजानेपर । जो होता है वह आगे कहते हैं ॥ २५७ ॥ णामदुगे वेयणियट्ठिदिबंधो संखवस्सयं होदि एवं सत्तकसाया उवसंता से सभागते ॥ २५४ वेदनीय स्थितिबन्धः संख्यवर्षको भवति । एवं सप्तकषाया उपशांताः शेषभागांते ॥ २५८ ॥ नाम अर्थ — नामगोत्रका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षप्रमाण होता है उससे कुछ अधिक वेदनीयका जानना । इसतरह सात नोकषाय उपशमनकालके शेष बहुभागके अन्तसमय में उपशम होते हैं ॥ २५८ ॥ ल. सा. १०
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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