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________________ लब्धिसारः। अर्थ-समय समय अनन्तगुणा घटता क्रमलिये अनुभागका अपवर्तन कहा था वही . इस कृतकृत्यवेदककालके अन्तसमयतक पाया जाता है उसीकालमें असंख्यात समय प्रबद्धोंकी उदीरणा पायी जाती है ॥ १४८॥ अब उसकी विधि कहते हैं; उदयवहिं उक्कट्टिय असंखगुणमुदयआवलिम्हि खिवे । उवरिं विसेसहीणं कदकिज्जो जाव अइत्थवणं ॥ १४९॥ __उदयबहिरपकर्षितं असंख्यगुणं उदयावलौ क्षिपेत् । उपरि विशेषहीनं कृतकृत्यो यावदतिस्थापनम् ॥ १४९ ॥ अर्थ-कृतकृत्यवेदककालके एकभाग प्रमाण द्रव्यको उदयावलिसे बाह्य ऊपरके निषेकोंसे ग्रहणकर उसको पल्यके असंख्यातवें भागका भाग देके उनमेंसे एक भाग तो उदयावलिमें असंख्यातगुणा क्रमलिये दिया जाता है और शेष बहुभागमात्र द्रव्य उस उदयावलिसे ऊपरकी स्थितिके अन्तमें समय अधिक अतिस्थापनावलिको छोड़ सब निषेकोंमें विशेषहीन क्रम लिये निक्षेपण करे। इसप्रकार ऊपरकी स्थितिका द्रव्य उदयावलिमें दिया जाता है उसका नाम उदीरणा है ॥ १४९ ॥ जदि संकिलेसजुत्तो विसुद्धिसहिदो वतोपि पडिसमयं । दवमसंखेजगुणं उक्कद्ददि णत्थि गुणसेढी ॥१५० ॥ यदि संक्लेशयुक्तो विशुद्धिसहितो अतोपि प्रतिसमयम् । द्रव्यमसंख्येयगुणमपकर्षति नास्ति गुणश्रेणी ॥ १५० ॥ अर्थ-यद्यपि कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि लेश्याके बदलेनेसे संक्लेश सहित होता है विशुद्धता युक्त होता है तो भी पहले उत्पन्न हुए करणरूप परिणामोंकी विशुद्धताके संस्कारसे समय २ प्रति असंख्यातगुणे द्रव्यंको अपकर्षण कर उदीरणा करता है । गुणश्रेणी आयामके विना कुछ द्रव्यको उदयावलिमें देता है बाकीको ऊपरकी स्थितिमें देदिया इसलिये यहां गुणश्रेणी नहीं है ॥ १५० ॥ जदि वि असंखेजाणं समयपबद्धाणुदीरणा तोवि। उदयगुणसेढिठिदिए असंखभागो हु पडिसमयं ॥ १५१ ॥ यद्यपि असंख्येयानां समयप्रबद्धानामुदीरणा तथापि । उदयगुणश्रेणिस्थितेरसंख्यभागो हि प्रतिसमयं ॥ १५१ ॥ अर्थ-यद्यपि असंख्यात समय प्रबद्धोंकी उदीरणा पूर्वपूर्व समयके उदीरणा द्रव्यसे असंख्यातगुणा क्रम लियेहुए है तो भी उस गुणश्रेणीरूप उदयमें आये निषेकके द्रव्यसे यह उदीरणा द्रव्य प्रतिसमय असंख्यातवां भागमात्र ही है ।। १५१ ॥ समय समय प्रति
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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