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________________ लब्धिसारः। १५. घरमे सर्वे खंडा द्विचरमसमय इति अपरखंडैः। असदृशखंडानामावलिरधःप्रवृत्ते करणे ॥ ४७ ॥ अर्थ-अधःप्रवृत्तकरणकालमें अंतसमयके तो सबखंड और दूसरे समयसे लेकर द्विचरमसमयतकके प्रथम प्रथम खंड हैं वे उनके ऊपरके समयके सबखंडोंसे समान नहीं हैं इसलिये असदृश हैं ॥ ४७ ॥ पढमे करणे अवरा णिवग्गणसमयमेत्तगा तत्तो। अहिगदिणा वरमवरं तो वरपंती अणंतगुणियकमा ॥४८॥ प्रथमे करणे अवरा निर्वर्गणसमयमात्रकाः ततः। अहिगतिना वरमवरमतो वरपंक्तिरनंतगुणितक्रमा ॥४८॥ अर्थ-पहले करणमें विशुद्धताके अविभागप्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा हरएक समयके प्रथमखंडोंके जघन्य परिणाम हैं वे ऊपर ऊपर अनंतगुणे हैं उसके बाद निर्वर्गणकांडके अंतसमयके प्रथमखंडको जघन्य परिणामसे पहले समयके अंतखंडका उत्कृष्ट परिणाम अनंतगुणा है । उससे द्वितीयकांडकके प्रथमसमयके प्रथमखंडका जघन्यपरिणाम अनंतगुणा है इसतरह जैसे सर्प इधरसे उधर उधरसे इधर गमन करता है उसीतरह जघन्यसे उत्कृष्टका उत्कृष्टसे जघन्यका अनंतगुणा क्रम है जबतक कि अंतकांडकके अंतसमयके प्रथमखंडका जघन्यपरिणाम होवे तबतक । यहां षट् स्थान नहीं संभवते ॥ ४८ ॥ पढमे करणे पढमा उड्डगसेढीए चरमसमयस्स । तिरियगखंडाणोली असरित्थाणंतगुणियकमा ॥४९॥ प्रथमे करणे प्रथमा ऊर्ध्वगश्रेण्याः चरमसमयस्य । . तिर्यग्गतखंडानामावलिरसदृशा अणंतगुणितक्रमा ॥ ४९ ॥ अर्थ-प्रथमकरणमें समय समयके परिणामोंकी ऊपर २ पंक्ति करनेसे और अंतसमयके परिणामोंकी बरोबर तिर्यग्रूपपंक्ति करनेसे अंकुशाकार रचना होती है । वह इनके ऊपरके परिणामोंसे समानरूप नहीं है इसलिये असदृश हैं। तथा ये परिणाम अनंतगुणा क्रमलिए विशुद्धतास्वरूप जानने ॥ ४९ ॥ इसतरह अधःकरणका खरूप कहा । .. अब दूसरे अपूर्वकरणका खरूप कहते हैं; पढमं व बिदियकरणं पडिसमयमसंखलोग़परिणामा । अहियकमा हु विसेसे मुहुत्तअंतो हु पडिभागो ॥ ५० ॥ प्रथम व द्वितीयकरणं प्रतिसमयमसंख्यलोकपरिणामाः। अधिकक्रमा हि विशेषे मुहूर्तातर्हि प्रतिभागः ॥ ५० ॥ अर्थ-पहले अधःकरणकी तरह दूसरा अपूर्वकरण है। उसमें विशेषता इतनी है कि
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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