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________________ लब्धिसारः । बादरमण वचि उस्सास कायजोगं तु सुहुमजचउकं । भदि कमसो बादरहुमेण य कायजोगेण ॥ ६२४ ॥ बादरमनो वच उच्छ्वास काययोगं तु सूक्ष्मजचतुष्कम् । रुणद्धि क्रमशो वादरसूक्ष्मेण च काययोगेन ॥ ६२४ ॥ अर्थ — बादर काययोगरूप होकर वादर मनयोग, वचनयोग, उच्छ्रास, काययोग- इन चारोंका क्रमसे नाश करता है और सूक्ष्मकाय योगरूप होकर उन चारों सूक्ष्मोंको क्रमसे नाश करता है ।। ६२४ ॥ आगे कहते हैं कि बादरयोग सूक्ष्मरूप परिणमानेसे कैसे होते हैं;सणिविमणि पुणे जहण्णमणवयणकायजोगादो । कुदि असंखगुणूणं सुदुमणिपुण्णवरदोवि उस्तासं ॥ ६२५ ॥ संज्ञिद्विसूक्ष्मनि पूर्णे जघन्यमनोवचनकाययोगतः । १६७ करोति असंख्यगुणोनं सूक्ष्मनिपूर्णावरतोवि उच्छ्वासं ॥ ६२५ ॥ अर्थ —संज्ञीपर्याप्तके जघन्य मनोयोग है उससे असंख्यातगुणा कम सूक्ष्म मनोयोग करता है, दो इंद्रियपर्याप्तके जघन्य वचनयोग है उससे असंख्यातगुणा कम सूक्ष्मवचनयोग करता है और सूक्ष्मनिगोदिया पर्याप्तके जघन्य काययोगसे असंख्यातगुणा कम सूक्ष्मकाययोग करता है । तथा सूक्ष्मनिगोदिया पर्याप्तक के जघन्य उच्छाससे असंख्यातगुणा कम सूक्ष्म उच्छ्रास करता है ॥ ६२५ ॥ एक्केक्कस्स णिउंभणकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो हु । सुमं देहणिमाणमाणं हियमाण करणाणि ॥ ६२६ ॥ एकैकस्य निष्टंभनकालो अंतर्मुहूर्तमात्रो हि । सूक्ष्मं देहनिर्माणं आनं हीयमानं करणानि ॥ ६२६ ॥ अर्थ – एक एक बादर व सूक्ष्म मनोयोगादिके निरोध करनेका काल प्रत्येक अन्तर्मुहूर्तमात्र है और सूक्ष्मकाययोगमें स्थित सूक्ष्म - उश्वासके नष्ट करनेके वाद सूक्ष्मकाययोगके नाश करनेको प्रवर्तता है | उसके विवाइच्छा कार्य होते हैं ॥ ६२६ ॥ हुमरस य पढमादो मुहुत्तअंतोत्ति कुणदि हु अपुवे । yarफडगट्ठा सेढिस्स असंखभागमिदो ॥ ६२७ ॥ सूक्ष्मस्य च प्रथमात् मुहूर्तांतरिति करोति हि अपूर्वान् । पूर्वगस्पर्धकाधस्तनं श्रेण्या असंख्यभागमितम् ॥ ६२७ ॥ अर्थ — सूक्ष्म काययोग होनेके प्रथमसमय से लेकर अन्तर्मुहूर्तकालतक पूर्वस्पर्धकोंके नीचे जगच्छ्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र अपूर्वस्पर्धक करता है ॥ ६२७ ॥
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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