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________________ रायूचंद्रजैनशास्त्रमालाद्वारा प्रकाशित ग्रंथोंकी सूची। १ पुरुषार्थसिझुपाय भाषाटीका-यह प्रसिद्ध शास्त्र दूसरीवार छपाया गया है । न्यों. १ रु०. 'भा०टी०-इसमें दो संस्कृत टीकायें और एक हिंदी भाषाटीका है। यह भी दूसरी वार छपाया गया है। न्यों० २ रु०. ३ज्ञानार्णव भा०टी०-इसमें ब्रह्मचर्यका विस्तारसे कथन है दूसरी वार छपाया गया है।न्यों०४ रु. ४ सप्तभंगी तरंगिणी भा० टी०-यह भी दूसरी वार छपाई गई है । न्यों. १ रु०. ५ बृहद्रव्यसंग्रह सं० भा टी०-बृहद्रव्यका उत्तम कथन किया है। न्यों. २ रु०. ६ द्रव्यानुयोगतर्कणा भा० टी०-इसमें नयोंका कथन है । न्यों० २ ०. ७ सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम सुत्र भा०टी०-इसकी थोड़ी प्रतियां रहीं थीं इसलिये अब दूसरी बार छपाया जा रहाहै । अबकी बार पहलेकी त्रुटियां निकाल दी जायगीं। न्यों० २ रु०. ८ स्याद्वादमंजरी सं० भा० टी०-इसमें छहों मतोंका विवेचन है । न्यों० ४ २०. ९ गोमटसार ( जीवकांड ) संस्कृत छाया और संक्षिप्त हिन्दी भा० टी० । न्यों. २।। रु०. १० गोमटसार ( कर्मकांड ) संस्कृत छाया और संक्षिप्त हिन्दी भा० टी० न्यों० २ रु०. . ११ प्रवचनसार सं०भा०टी०-इसमें दो संस्कृत टीका और एक हिन्दी भाषाटीका है। न्यों. ३ रु०१२ परमात्मप्रकाश सं० भा० टी०-यह अध्यात्म ग्रंथ है। न्यों. ३ रु०. १३ लब्धिसार (क्षपणासार गर्भित ) संस्कृत छाया और संक्षिप्त हिन्दी भाषाटीका सहित छपाया गया है । न्यों० १॥ रु०. १४ मोक्षमाला-यह ग्रंथ श्रीमद् रायचंद्रजीकृत है। गुजराती भाषामें छपा है। न्यों बार आना । १५ भावनाबोध-यह ग्रंथ भी उक्त महान् पुरुष कृत है। गुजराती भाषामें छपा है। न्यों. चार आना। आवश्यक सूचना। सभाष्यतत्त्वार्थाधिगम भा०टी०-यह ग्रथ दूसरी वार शुद्ध कराके छपाया जा रहा है। पहली वारकी सब त्रुटियां यथा संभव निकाल दी जावेंगी। त्रिलोकसार-यह ग्रंथ श्रीमन्नेमिचंद्राचार्य सिद्धांत चक्रवर्ती विरचित मूल गाथारूप है । गोमटसार वगैरहकी संज्ञाओंके जाननेकेलिये तथा तीन लोककी रचनाका खरूप और विशेषकर भूगोल, खगोल, भरतखंडकी सृष्टिकी रचना और संहार इत्यादि बहुत बातोंकें विस्तारसे जाननेकेलिये संस्कृत टीका और हिन्दी भाषाटीका इन दो टीकाओं सहित इसी मंडलसे शीघ्र प्रकाशित कर पाठकोंके सामने एक वर्षके अंदर उपस्थित किया जायगा। यह संस्था किसी स्वार्थकेलिये नहीं है केवल प्राचीन आचार्योंके ग्रंथोका उद्धार कर पाठकोंके उपकारके वास्ते खोली गई है। जो द्रव्य आता है वह इसी जैनशास्त्रमालामें उत्तम प्रथोंके ऊद्धारके वास्ते लगाया जाता है। इति शम् । प्रन्थोंके मिलनेका पताशा० रेवाशंकर जगजीवन जोहरी आनरेरी व्यवस्थापक श्रीपरमश्रुत प्रभावकमंडल जोहरी बाजार खाराकुवा पो० नं. २ बंबई ।
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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