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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । माणादीणहियकमा लोभगपुवं च वग्गणा तेसिं । कोहोति य अट्ठपदा अणंतगुणिदक्कमा होति ॥ ४८३ ॥ ' आंदोलस्य च प्रथमे रसखंडे पातिते अपूर्वात् ।। क्रोधात् अधिकक्रमाः प्रदेशगुणहानिस्पर्धकास्ततः ॥ ४८१ ॥ . भवति असंख्येयगुणं एकस्पर्धकवर्गणा अनंतगुणा । ततो अनंतगुणितं क्रोधस्य अपूर्वस्पर्धकानां च ॥ ४८२ ॥ मानादीनामधिकक्रमं लोभगपूर्व च वर्गणा तेषां । __क्रोध इति च अष्ट पदानि अनंतगुणितक्रमाणि भवंति ॥ ४८३ ॥ . अर्थ-अश्वकरणकालके प्रथम अनुभागकांडकका घात होनेपर हुए क्रोधके अपूर्वस्पर्धक थोड़े हैं उससे मानादिके विशेष अधिक क्रमलिये हुए हैं । उससे प्रदेशकी एक गुणहानिके स्पर्धकोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है । उससे एकस्पर्धकमेंकी वर्गणाओंका प्रमाण अनन्तगुणा है । उससे क्रोधके सब अपूर्वस्पर्धकोंकी वर्गणाओंका प्रमाण अनंतगुणा है । उससे मानके सब अपूर्व स्पर्धकोंकी वर्गणा विशेष अधिक क्रमलिये हैं । और लोभके अपूर्वस्पर्धकोंकी वर्गणाओंके प्रमाणसे लोभके पूर्वस्पर्धकोंका प्रमाण अनन्तगुणा है । उससे लोभके पूर्वस्पर्धकोंकी वर्गणाका प्रमाण अनन्तगुणा है । उससे मायादिका प्रमाण क्रोधकी वगणापर्यंत उलटे क्रमसे अनन्तगुणा है । इस प्रकार आठ स्थानोंका अल्पबहुत्व जानना ॥ ४८१ । ४८२ । ४८३ ॥ रसठिदिखंडाणेवं संखेजसहस्सगाणि गंतूणं । तत्थ य अपुवफड्डयकरणविही णिटिदा होई ॥ ४८४ ॥ रसस्थितिखंडानामेवं संख्येयसहस्रकानि गत्वा । तत्र च अपूर्वस्पर्धककरणविधिनिष्ठिता भवति ॥ ४८४ ॥ . अर्थ-इसप्रकार क्रमसे हजारों अनुभागकांडक वीतजानेपर एकस्थितिकांडक होता है । ऐसे संख्यात हजार स्थितिकांडक जिसमें हों ऐसा अन्तर्मुहूर्तमात्र अश्वकरणकाल होनेपर अपूर्वस्पर्धककरणकी क्रिया पूर्ण होजाती है ॥ ४८४ ॥ ... आगे कृष्टि क्रियासहित अश्वकर्ण क्रिया होती है ऐसा यतिवृषभाचार्यका अभिप्राय कहते हैं; हयकण्णकरणचरिमे संजलणाणहवस्सठिदिबंधो। वस्साणं संखेजसहस्साणि हवंति सेसाणं ॥ ४८५॥ हयकर्णकरणचरमे संज्वलनानामष्टवर्षस्थितिबंधः। :: वर्षाणां संख्येयसहस्राणि भवंति शेषाणाम् ॥ ४८५ ॥ ..
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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