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________________ लब्धिसारः । ११५ प्रति असंख्यातगुणा क्रम लिये पूर्वकी तरह गुणश्रेणी और गुणसंक्रम होता है ॥ ४११ ॥ इसतरह तीनकरण कहे । आगे स्थितिबन्धापरणका क्रम कहते हैं; ठिदिबंध सहस्सगदे संखेज्जा बादरे गदा भागा । तत्थासण्णिस्सद्विदिसरिसं ठिदिबंधणं होदि ॥ ४१२ ॥ स्थितिबंधसहस्रगते संख्येया बादरे गता भागाः । तत्रासंज्ञिनः स्थितिसदृशं स्थितिबंधनं भवति ॥ ४१२ ॥ अर्थ — इसप्रकार संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर अनिवृत्तिकरणकाल के संख्यात बहुभाग वीतजानेपर एक भाग शेष रहनेके अवसर में असंज्ञीपंचेंद्रीकी स्थिति के समान स्थितिबंध होता है ॥ ४९२ ॥ ठिदिबंध सह स्सगदे पत्तेयं चरतियविएहंदी | ठिदिबंध समं होदि हु ठिदिबंधमणुक्कमेणेव ॥ ४१३ ॥ स्थितिबंधसहस्रगते प्रत्येकं चतुस्त्रिद्विएकेंद्री । स्थितिबंधसमं भवति हि स्थितिबंधमनुक्रमेणैव ॥ ४१३ ॥ अर्थ – पूर्वोक्त क्रम संख्यातहजार स्थितिबन्ध होनेपर क्रमसे चौइंद्री तेइंद्री दोइंद्री एकेंद्रीके स्थितिबन्धके समान सौ पचास पच्चीस एकसागर प्रमाण कर्मका स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१३ ॥ एइंदियदीदो संखसहस्से गये हु ठिदिबंधे । पले दिवदुगं ठिदिबंधो वीसियतियाणं ॥ ४१४ ॥ एकेंद्रियस्थितितः संख्यसहस्रे गते हि स्थितिबंधे । पल्यैकद्व्यर्धद्विकं स्थितिबंध: वीसियत्रिकाणाम् ॥ ४१४ ॥ अर्थ – एकेंद्रियसमान स्थितिबंध से परे संख्यातहजार स्थितिबन्ध वीत जानेपर वीसयोंका एकपल्य तीसियोंका डेढपल्य मोहका दो पल्यमात्र स्थितिबन्ध होता है ॥ ४१४ ॥ तक्काले ठिदिसंत लक्खपुधत्तं तु होदि उवहीणं । बंधोरणा वंधी ठिदिखंडं संतमोसरदि ॥ ४१५ ॥ तत्काले स्थितिसत्त्वं लक्ष्यपृथक्वं तु भवति उदधीनाम् । बंधापरणं बंधः स्थितिखंडं सत्त्वमपसरति ।। ४१५ ।। अर्थ — उस समय कर्मोंका स्थितिसत्त्व पृथक्त्वलक्षसागर प्रमाण होता है । वह अनिवृत्तिकरण के प्रथमसमयके स्थितिबन्ध से संख्यातगुणा कम जानना । और स्थितिबन्धापसरसे स्थितिबन्ध घटता है तथा स्थितिकांडकोंसे स्थितिसत्त्व घटता है ॥ ४१५ ॥
SR No.022409
Book TitleLabdhisara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1916
Total Pages192
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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