SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३ ) इस समय आपकी कोई अठारह वर्षकी वय थी, किन्तु इतनी छोटी वय में भी आपने जैनदर्शनके मुख्य २ सिद्धांतोंका उत्तम प्रकारसे ज्ञान संपादन कर लिया था. इसके सिवाय व्याकरण, काव्य, कोश, न्याय आदि शास्त्रोंका अध्ययन करते थे. ज्योतिष. वैद्यक, छन्द शास्त्र शास्त्रीजीके समीपसे देखा करते थे. आचार्य श्रीजीके साथ ग्रामानुग्राम विचरने से यद्यपि शास्त्राध्ययनमें क्षति पहुंचती थी तथापि शास्त्री साथ में रहनेसे विशेष हानी पहुचनेका संभव नहीं था. आचार्यजीने कोई ग्यारा वर्ष पर्यन्त आपको विद्याध्ययन करवाया और तदनंतर प्रधानपदपर नियतकर दिये गये. आचार्य जी का विचार आप को बहुत कुछ अभ्यास करवाने का था परन्तु गच्छका भार चलानेको सुयोग्य प्रधान हाथ नीचे न होने के कारण यह कार्य आपके सुपरत करना पड़ा. और जहांतक आचार्य श्री विद्यमान रहे तहांतक प्रधानपद पर आपही रहे । वि. सं. १९१५ माघ शुक्ल अष्टमीके रोज आचार्यजीका देहान्त पोहोकरण ग्राममें हुआ उस समय आचार्यजी महाराजके चारों शिष्य (१ सूर्यमलजी. २ मुलतानचन्द्रजी. ३ केवलचन्द्रजी. और ४ कपूरचन्द्रजी.) समीप थे. सूर्यमलजी महाराज भोले भाले और बडेही सरल मनके थे व आचार्यजी की सेवा इन्होंने भक्ति पूर्वक खूब की थी इससे आचार्यजीने अन्त समय ऐसा फरमाया कि " मेरा बडा शिष्य सूर्यमल सरल और गुरू भक्त है. इससे मेरे पीछे इसको किसी भी बातकी तकलीफ नहो इस लिये मेरा विद्वान-शिष्य-केवलचंदको आज मैं इसके नामपर कर देता हूं" आपने भी गुरू भक्तिके वश और जबसे आप आचार्यजीके शिष्य हुवे थे तबसे सब प्रकारका लालन पालन, वगैरा सूर्यमल नहीं किया इससे आपने भी इस बातका स्वीकार कर लिया. किन्तु वास्तवमें आप शिष्य आचार्य श्रीकेही कहला सकते हैं और यह बात युक्तियुक्त भी है. आचार्य श्रीका स्वर्गारोहण क्रिया सब जैन शास्त्रानुसारही हुई. आचार्य श्रीके परलोक गमनके थोड़ेही दिन पीछे आपने प्रथम पदका त्याग कर दिया. वि. सं. १९१६ वैशाख शुक्ल अक्षयतृतियाको बीकानेरके चतुविध संघने मिलकर श्री ताराचन्द्र सूरिजीके पट्टपर लघु शिष्य कपूरचं
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy