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________________ हैं और लेखनी द्वारा क्या व्यक्त कर रहे हैं यह बतलाना विशेष लाभ दायक होगा इस लिए हम एक वैदिक विद्वान महाशय केही बिचार यहां पर देना उचित समझते हैं। पाठक इसे पढ़ कर इस बात पर बिचार करें: "वेद शब्द "विद्" धातु से निकला है। इस धातु से जानने का अर्थ निकलता है ।" आगे लिखा है कि-"वेद पर सनातन धर्मावलम्बी हिन्दुओं का अटल विश्वास है । वेद हम लोगों का सब से श्रेष्ठ और सबसे पुराना प्रन्थ है।" आगे लिखा है कि-"कोलबुक साहब ने भी वेद-प्राप्ति की चेष्टा की थी, पर किसी दाक्षिणात्य पंडित ने वैदिक छन्दों में लिखी हुई देवी-देवताओं की स्तुतियों से पूर्ण एक ग्रंथ उन्हें दे दिया और कहा कि यही वेद है । भला म्लेच्छों को कहीं दाक्षिणात्य पंडित वेद दे सक्ते हैं ? ऐसाही धोखा एक और साहब को भी दिया गया था । मदरास के किसी शास्त्री ने सत्रहवीं शताब्दी में एक कृत्रिम यजुर्वेद की पुस्तक फादर राबर्ट डि नोबिली नामक पादरी को देकर उससे बहुतसा रुपया लिया । यह ग्रन्थ १७६१ ईसवी में पेरिस के प्रधान पुस्तकालय में पहुँचा, वहाँ पहले इसकी बड़ी कदर हुई । पर सारा भेद पीछे से खुल गया।" आगे लिखा है कि-वेदों की "त्रयी' संज्ञा है । त्रयी कहने से ऋक्, यजु और साम इन्हीं तीन वेदों का ज्ञान होता है । अथर्व वेद एक प्रकार का परिशिष्ट है । ऋग्वेद में तीन ही वेदों का उल्लेख है। . १ यह लेख विनायक विश्वनाथ वेद विख्यात जी की सही से इलाहाबाद (प्रयाग) की सरस्वती नाम की मासिक पत्रिका के भाग ९ वें की संख्या ९ पर अर्थात् १९०८ के सप्तम्बर की संख्या में पृष्ठ ३८९ पर छपा है। २ कैसा श्रेष्ठ और कैसा पुराना ग्रंथ है यह इस लेख को पढ़ने से मालूम हो जायगा। प्रन्थकर्ता ..
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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