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________________ ( ९ ) पृथ्वी इत्यादि, और फिर दूसरों की तर्कताप से बचने के लिए ऐसा भी लिख दिया कि प्रत्यक्ष में सृष्टि की उत्पत्ति जाननेवाला व कहनेवाला कोई भी नहीं है. और सृष्टि किसकी रची हुई है यह भी किसे मालूम ? देखिए जिनको संशय शत्रु ने पग पग पर घेरा है उनके विचारों को कौन स्वीकार करेगा ! सृष्टि के कर्ता को मानने वालों का कहना है कि-चराचर जगत् का निर्माण और संहार अर्थात् उत्पत्ति और विनाश, ईश्वर स्वतः अपनी अचिन्त्य शक्ति के माहात्म्य से करता है, यदि केवल सृष्टि रचाही करे तो असंख्य प्राणिगण त्रिभुवन में भी न ठहर सकें अर्थात् कहीं स्थानही न मिले इसलिये साथ ही साथ संहार भी करना पड़ता है । पृथ्वी, पर्वत, सुधाकर, दिनकर, महासागरादि जो जो वस्तु हैं वे संपूर्ण किसी बुद्धिमान की रचित अवश्य हैं। जैसे घट, पट; कुम्भकार, सूत्रकार के रचे हुए हैं वैसे पृथ्वी पर्वतादिक के लिये भी रचयिता होना आवश्यक है। ऐसा विभु, नित्य, एक, सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, परमेश्वर के विना अन्य दूसरा कोई भी नहीं है, इस संसार में प्राणिमात्र जो चलनादि व्यवसाय करते हैं वह सर्वशक्तिमान ईश्वर की अचिन्त्य शक्ति के प्रभाव से करते हैं, ऐसा, सृष्टि ईश्वरकृत मानने वालों का कहना है, इस बात को जैनधर्म अस्वीकार करता है, और बौद्ध व प्राचीन सांख्य जो इस बात को अस्वीकार करते हैं तो प्रायः इन्होंने जैनधर्म का अनुकरण किया हो ऐसा हमारा मत है क्योंकि जैनधर्म बहुत प्राचीन है और इस धर्म के तत्त्व विश्वास करने योग्य हैं, यह कहना हमारा पक्षपात या हठ से नहीं, किन्तु सत्यतापूर्वक है और सत्यदर्शी जनों को भी स्वीकार करना ही होगा कि प्राचीन से प्राचीन जो संसार में धर्म है तो जैनधर्म ही है जिसकी आद्य व्यवस्था किसी भी इतिहासकार ने युक्तियुक्त वर्णन नहीं की यदि एक आधे ने द्वेषबुद्धि से कहीं लिख भी दिया हो तो इससे प्राचीनता नष्ट नहीं हो सक्ती । कई विद्वानों की ऐसी भी समझ है कि बौद्ध व वैदिक मत बहुत प्राचीन है। परंतु जैनधर्म इनसे भी प्राचीन धर्म है क्योंकि बौद्धशास्त्रों में और वैदिकशास्त्रों में जैनधर्म विषयक खण्डन-मण्डनादि
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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