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________________ श्री - जैन एसोसीएशन ऑफ इन्डिया के लाइफ मेम्बर सा. रतनशी - सामजी कच्छ - कोठारा वाले की बनाई हुई गहुली । [ रंगरसीया - रंगरसबन्यो मनमोहनजी | यह देशी ] अहो गुरु बालचन्द्रजी, भले आव्या जी । सहु संघ हर्षित होयहो, मनभाव्या जी । अन्त• ॥ १ ॥ केवलचन्द्रजी गुरु आपना, गुणवन्ता जी । शिष्य छो तमे बुद्धिवन्तहो, विद्यावन्ता जी ॥ २ ॥ तमे जिनवाणि सत्य करी, दृढ मानी जी । तेथी त्यागी दुनिया शीघ्र हो, दिवानी जी ॥ ३ ॥ कर्मग्रन्थ वांचो अच्छा अति, सारुं जी । तेतो लागे सहुने मीठडु, अतिप्यारुं जी ॥ ४ ॥ श्रावक श्राविका सहुमली, गुणगात्रे जी । शास्त्र सांभली पुलकित होय, हां मनभावे जी ॥ ५ ॥ आकोलानो संघ तमने नमें, बहुभावे जी । सामत सुत रतनसी, गुण गावे जी ॥ ६ ॥ ॥ इति ॥
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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