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________________ ( 28 ) “दया दानं दमो देवपूजा भक्तिर्गुरौ क्षमा । सत्यं शौचं तपोऽस्तेयं, धर्मोऽयं गृहमेधिनाम्" ॥१॥ १ सर्व जीवों पर अनुकंपा दया रखना, २ अभय सुपात्रादि दान देना, ३ पंच इन्द्रियों का दमन, ४ जिनेंद्र देव की द्रव्य भाव सहित पूंजा, ५ गुरु भक्ति, ६ क्षमा, ७ सत्य, ८ पवित्र रहना, ९ तपस्या करना और १० चोरी नहीं करना । यह दशविधधर्म गृहस्थों का कहा । धर्म कार्य में उद्यमी, आस्तिक, विनयवान्, शास्त्र गुरुमुख से श्रवण करने वाला, परलोक साधन के लिए, शुद्ध मन, वचन, काया से धर्मक्रिया करने वाला, सद्बुद्धियुक्त, संसार को असार समझकर लोभ लालच को घटानेवाला, विषय सुख को क्षणिक समझकर त्याग करनेवाला और कषाय को हटाकर स्वभाव को स्थिर रखनेवाला हो वही शुद्ध श्रावक हो सकता है। " दूसरा यति धर्म दशविध इस प्रकार जानना :-- "खंति- अज्जव - मद्दव - मुत्ति-तव-संयमो य बोद्धवो । सच्चं सोयं अकिंचणं च बंभं च जई धम्मो " ॥ १ ॥ १ क्षमा, २ निरभिमान, ३ निष्कपट, ४ सर्व सांसारिक कार्यों से मुक्त, ५ तपयुक्त, ६ सत्रह प्रकार के संयम का पालनहार, ७ सत्यग्राही-सत्यवक्ता, ८ बाह्य आभ्यन्तर शौच, ९ सुवर्णादिक धातु के त्यागी, १० ब्रह्मचर्यव्रत सहित यह दशविध यतिधर्म कहा । और छ काय के रक्षक, शुद्ध उपदेश के देने वाले, षट द्रव्य की चर्चा के जानकार पंच महाव्रत धारक, पांच इन्द्रिय के २३ विषयों को जीतने वाले, कषायरहित, ज्ञान, दर्शन, चारित्र के आराधक, जिनागम स्याद्वाद वाणी के जानकर, अप्रमादी धर्मधुरंधर, मोक्षमार्ग के दर्शक, गृहस्थाश्रम का त्याग, दीक्षा ग्रहणकर तीर्थकरों के मार्ग को बतलाने वाला जो हो उसी को यतिधर्म का आराधक समझना चाहिए ।
SR No.022403
Book TitleJagatkartutva Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Maharaj
PublisherMoolchand Vadilal Akola
Publication Year1909
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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