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________________ यना विषयोथी नरपूर महान् ग्रंथ- गुजराती नाषांतर करवानुं कार्य घणुं मुश्केल ; उतां पण शक्तिविनानुं बालक जेम पोताना चरणोव चालवानो प्रयत्न करे, तेम में पण आ साहस माथे उगव्यु ने; अने तेम करतां बालक जोके समथमीयुं खा पी जाय रे, तोपण सुजनो तेनी हांसी नही करतां, तेने जेम बेतुं करे , तेम मारी बुझि पण अल्प होवाथी, आ महान् ग्रंथना गुजराती भाषांतरमां जोके प्रमादना वशश्री अथवा मतिमंदपणाश्री घणा दोषो आवेला होशे, तोपण तेमाटे विछज्जनो मने दमा करी, ते सुधारीने वांचशे; अने मारापर कृपा लावी मने पण जो तेमाटेनी सूचना करशे, तो हुँ तेमनो मारा खरा अंतःकरणथी उपकार मानी, बीजी आवृत्तिमां ते दोषो सुधारवानी तक लेश्श. गच्छतः स्खलनं क्वापि । नवत्येव प्रमादतः ॥ हसंति उर्जनास्तत्र । समादधति सज्जनाः ॥१॥ लां. श्रावक हीरालाल पि. हंसराज, (नामनगरमता.)
SR No.022402
Book TitleSyadvad Manjari
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorMallishensuri, Hiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1902
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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