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________________ १३७ न्तधर्म स्वदृष्टान्तऽज्युपगच्छतः प्रतिज्ञाहानिनाम निग्रहस्थानं । यथाऽनित्यः शब्द ऐयिकत्वाद् घटवदिति प्रतिज्ञासाधनाय वादी वदन परेण सामान्यमै निश्यकमपि नित्यं दृष्टमिति हेतावनैकान्तिकीकृते यद्येवं ब्रूयात् सामान्यवघटोऽपि नित्यो नवत्विति । स एवं ब्रुवाणः शब्दाऽनित्यत्वप्रतिज्ञां जह्यात् । ५४ । प्रतिझातार्थप्रतिषेधे परेण कृते तत्रैव धर्मिणि धर्मान्तरं साधनीयमनिदधतः प्रतिझान्तरं नाम निग्रहस्थानं नवति । अनित्यः शब्द ऐनिश्यकत्वादित्युक्ते तथैव सामान्येन व्यनिचारे चोदिते यदि ब्रूयाद्युक्तं । सामान्यमैनिश्यकं नित्यं । तमि सर्वगतं । असर्वगतस्तु शब्द इति । तदिदं शब्देऽनित्यत्वलदणपूर्वप्रतिझातः प्रतिझान्तरमसर्वगतः शब्द इति निग्रहस्थानं । ५५ । अनया anwrwww.rrrrrrrrrrrrrrrammam ष्टांतना धर्म ने पोताना दृष्टांतमा दाखल करवाथी प्रतिज्ञाहानि नामर्नु निग्रहस्थान थाय जे. जेमके शब्द अनित्य , इंडियगोचर होवाथी, घटनी पेठे; एवी प्रतिज्ञा साधवामाटे वादी ज्यारे बोल्ने त्योरे, बीनो सामान्य ए, पण इंघियगोचर नित्य देखायुं डे, एवी रीते हेतुने अ.. नेकांतिक करते उते ज्यारे एम बोले के सामान्यनी पेठे घट पण नित्य थान ? एवी रीते ते बोलतो थको शब्दना अनित्यपणानी प्रतिझाने गेमी आपे । ५४ । प्रतिज्ञा करेला अर्थनो प्रतिषेध, पर करते बते तेज धर्मिमां बीजा धर्मनुं साधन करवाथी प्रतिज्ञांतर नामनुं निग्रहस्थान थाय ने; जेमके शब्द अनित्य डे, इंघियगोचर होवाथी ; एम कहेते बते तेवीज रीते सामान्यनीसाथे दृषण देखामते उते, एम बोलेके, ठीक जे ! सामान्य इंघियगोचर नित्य बे, अने ते सर्वव्यापी , अने शब्द तो सर्वव्यापी नथी; एवी रीते शब्दमां अनित्यपणाना लक्षणवाली पेहेलांनी प्रतिज्ञाथी जूदी प्रतिझावाखं एटले 'असर्वव्यापी शब्द डे' एवी रीतनुं प्रतिझांतर नामर्नु बीजुं निग्रहस्थान जाणवू. ५॥
SR No.022402
Book TitleSyadvad Manjari
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorMallishensuri, Hiralal Hansraj
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1902
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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