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________________ ५३२ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [सर्वविशुद्धज्ञानरममकारत्यागात् । तदाश्रितद्रव्यलिंगत्यागेन दर्शनज्ञानचरित्राणां मोक्षमार्गत्वेनोपासनस्य दर्शनात् ॥ ४०८।४०९॥ अथैतदेव साधयति;. ण वि एस मोक्खमग्गो पाखंडीगिहिमयाणि लिंगाणि ।। दसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा विति ॥ ४१०॥ नाप्येष मोक्षमार्गः पाखंडिगृहिमयानि लिंगानि । दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्ग जिना वदंति ॥ ४१० ॥ रीरं तस्य शरीरस्य यन्ममत्वं तन्मनोवचनकायैर्मुक्त्वा । पश्चात् दंसणणाण चरित्ताणि सेवंते सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्राणि तानि सेवंते भावयंतीत्यर्थः ॥ ४०८१४०९ ॥ अथैतदेव व्याख्यानं विशेषेण दृढयति;- वि एस मोक्खमग्गो न वैष मोक्षमार्गः । एष कः ? पाखंडिगिहमयाणि लिंगाणि निर्विकल्पसमाधिरूपभावलिंगान्निरपेक्षाणि रहितानि यानि पाखंडिगृहिमयानि द्रव्यलिंगानि । कथंभूतानि ? निग्रंथकौपीनग्रहणरूपाणि बहिरंगाकारचि. हानि । तर्हि को मोक्षमार्गः? इति चेत् दसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा मोक्षमार्ग मानते हुए मोहकर द्रव्यलिंगको ही अंगीकार करते हैं । सो इस द्रव्यलिंगको मोक्षमार्ग मानना अयुक्त है क्योंकि सभी अरहंत देव भगवानोंके शुद्ध ज्ञानमयपना होनेसे, द्रव्यलिंगका आश्रयभूत शरीरके ममकारका त्याग होनेसे, उस शरीरके आश्रित द्रव्यलिंगका त्यागकर और दर्शन ज्ञानचारित्रोंको मोक्षमार्गपनेकर सेवन देखा जाता है ॥ भावार्थ-जो देहमय द्रव्यलिंग ही मोक्षका कारण होता तो अरहंतादिक देहका ममत्व छोड़ दर्शनज्ञानचारित्रको क्यों सेवते ? द्रव्यलिंगसे ही मोक्षको प्राप्त हो जाते । इसलिये यह निश्चय हुआ कि देहमय लिंगमोक्षमार्ग नहीं है । परमार्थसे दर्शन ज्ञानचारित्रस्वरूप आत्मा ही मोक्षका मार्ग है ॥ ४०८ ॥ ४०९ ॥ ___ आगे यह साधते हैं कि दर्शनज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग है;-पाखंडिगृहिमयानि लिंगानि ] पाखंडी लिंग और गृहस्थलिंग [ एषः ] यह [ मोक्षमार्गः ] मोक्षमार्ग [ नापि] नहीं है [ दर्शनज्ञानचारित्राणि ] दर्शनज्ञानचारित्र हैं वे [ मोक्षमार्ग] मोक्षमार्ग हैं [जिना विदंति ] ऐसा जिनदेव कहते हैं । टीका-निश्चयकर द्रव्यलिंग मोक्षका मार्ग नहीं है क्योंकि इसको शरीरके आश्रित होनेसे यह परद्रव्य है । तथा दर्शनज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग हैं क्योंकि इनको आत्माके आश्रितपना होनेसे निज ( आत्म ) द्रव्यपना है ॥ भावार्थ-मोक्ष है वह सब कर्मोंके अभावरूप आत्माका परिणाम है इसलिये इसका कारण भी आत्माका परिणाम ही होना चाहिये । दर्शनज्ञानचारित्र आत्माके परिणाम हैं इसलिये वेही मोक्षके मार्ग है यह निश्चयसे कहा है । तथा लिंग है वह देहमय है देह है वह पुद्गलद्रव्यमय
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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