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________________ अधिकारः ९] समयसारः। १९१ यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ५ यदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं वाचा च तन्मे मिथ्या दुष्कृतमिति ६ यदहमकार्ष यदचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ७ यदहमकार्ष यदचीकरं मनसा वाचा च कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ८ यदहमकार्ष यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचा च कायेन च तन्मिथ्या मे दुष्कृतमिति ९ यदहमचीकरं यत्कुर्वतमप्यन्यं समन्वज्ञासिषं मनसा च वाचा च हर्षविषादमयं सुखदुःखानुभवनं यत् , सा बंधकारणभूता कर्मफलचेतना भण्यते । इयं कर्मचेतना कर्मफलचेतना द्विरूपापि त्याज्या बंधकारणत्वादिति । तत्र तयोर्द्वयोः कर्मचेतनाकर्मफलचेतनयोर्मध्ये पूर्व तावन्निश्चयप्रतिक्रमण-निश्चयप्रत्याख्यान-निश्चयालोचनास्वरूपं यत्पूर्वं व्याख्यातं तत्र स्थित्वा शुद्धज्ञानचेतनाबलेन कर्मचेतनासंन्यासभावनां नाटयति । कर्मचेतनात्याग लगा इसलिये दूवा हुआ । इसकारण इसको भी बत्तीसका भंग कहना। यहां तक बत्तीसके तीन भंग हुए ।३२।४। जो पापकर्म अतीतकाल में मैंने किया, अन्यको प्रेरणाकर कराया और करते हुएको भला जाना मनकर ही वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा . पांचवां भंग हुआ। यहां कृत कारित अनुमोदनाका तो तिया ही है और एक मन ही लगा उसका एका हुआ वचन काय न लगा इसलिये इसका नाम इसतीसका भंग कहा ।५।३१। जो मैंने अतीतकालमें पापकर्म किया, अन्यको प्रेरणा कर कराया और करते हुएको भला जाना वचनकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा छठा भंग हुआ। यहां कृत कारित अनुमोदनाका तो तिया ही है और वचन ही एक लगा, मन काय न लगा इसलिये तिया एकाका इकतीसका भंग नाम हुआ ।६।३१। जो मैंने पापकर्म अतीतकालमें किया और अन्यको प्रेरकर कराया तथा अन्य करते हुएको भला जाना कायकर, वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा यह सातवां भंग हुआ। यहां कृत कारित अनुमोदनाका तो तिया ही है और काय एक ही लगा मन वचन न लगा इसलिये तिया एका इसतरह इकतीसका भंग नाम हुआ। ७।३१॥ इसप्रकार इकतीसके भी तीन ही भंग हुए । जो पापकर्म मैंने अतीतकालमें किया, अन्यको प्रेरकर कराया मन वचन कायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा यह आठवां भंग हुआ । यहां कृत कारित ये दो ही लगाये और मन वचन काय तीनों लगाये इसलिये दूवा तिया इसप्रकार समस्या तेईसका भंग नाम हुआ ।८।२३। जो पापकर्म अतीतकालमें मैंने किया अन्यको करते हुएको भला जाना मनवचनकायकर वह पापकर्म मेरा मिथ्या हो । ऐसा नवमां भंग है । यहां कृत अनुमोदना ये दो ही लिये मनवचनकाय तीनों ही लगे इसलिये दूवा तिया. ऐसी तेईसकी समस्या हुई इसकारण तेईस का भंग नाम पाया । ९ । २३ ॥
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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