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________________ अधिकारः ९] समयसारः। ४७१ णाणस्स दसणस्स य भणिओ घाओ तहा चरित्तस्स। णवि तहिं पुग्गलव्वस्स कोऽवि घाओ उ णिद्दिट्ठो ॥ ३६९ ॥ जीवस्स जे गुणा केइ णत्थि खलु ते परेसु दव्वेसु। तह्मा सम्माइटिस्स णत्थि रागो उ विसएसु ॥ ३७०॥ रागो दोसो मोहो जीवस्सेव य अणण्णपरिणामा। एएण कारणेण उ सद्दादिसु णत्थि रागादि ॥ ३७१ ॥ दर्शनज्ञानचरित्रं किंचिदपि नास्ति त्वचेतने विषये । तस्मात्किं हंति चेतयिता तेषु कायेषु ॥ ३६६ ॥ मसु औदारिकादिपंचकायेषु । कथंभूनेषु तेषु ? अचेतनेषु । तस्मात्किं घातयते चेतयिता आत्मा तेषु जडस्वरूपविषयकर्मकायेषु ? न किमपि । किंच शब्दादिपंचेंद्रियाभिलाषरूपो ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मबंधकारणभूतः कायममत्वरूपश्च योऽसौ मिथ्यात्वरागादिपरिणामो मनसि तिष्ठति तस्य घातः कर्तव्यः ते च शब्दादयो रागादीनां बहिरंगकारणभूतात्याज्याः-इति भावार्थः । तस्यैव पूर्वोक्तगाथात्रयस्य विशेषविवरणं करोति-तद्यथा-णाणस्स दंसणस्स य भणिदो घादो तहा चरित्तस्स शब्दादिपंचेंद्रियाभिलाषरूपेण कायममत्वरूपेण वा ज्ञानावरणादिकर्मबंधनिमित्तमनंतानुबंध्यादिरागद्वेषरूपं यन्मनसि मिथ्याज्ञानं तिष्ठति तस्य मिथ्याज्ञानस्य निर्विकल्पसमाधिप्रहरणेन सर्वज्ञैर्घातो भणितः न केवलं मिथ्याज्ञानस्य मिथ्यादर्शनस्य च । तथैव मिथ्यात्वचारित्रस्य च णवि तमि कोवि पुग्गल व्वे घादो दुणिद्दिट्टो नच कहा है [ तत्र ] वहां [ पुद्गलद्रव्यस्य तु ] पुद्गल द्रव्यका तो [कोपि घातः] कुछ भी घात [ नापि निर्दिष्टः ] नहीं कहा । [ये केचित् ] जो कुछ [जीवस्य गुणाः ] जीवके गुण हैं [ते ] वे [खलु ] निश्चयकर [ परेषु द्रव्येषु ] परद्रव्योंमें [न संति] नहीं है [ तस्मात् ] इसलिये [सम्यग्दृष्टेः ] सम्यग्हष्टिके [विषयेषु ] विषयोंमें [ रागस्तु] राग ही [ नास्ति ] नहीं है। [रागः द्वेषः मोहः ] राग द्वेष मोह ये सब [जीवस्यैव च ] जीवके ही [अनन्यपरिणामाः ] एक (अभेद ) रूप परिणाम हैं [ एतेन कारणेन तु] इसीकारण [रागादयः ] रागादिक [शब्दादिषु] शब्दादिकोंमें [ न संति ] नहीं है ।। टीका-निश्चयकर जो जिसमें होता है वह भी उसके घात होनेसे घाता जाता है। जैसे दीपकमें प्रकाश है सो दीपकके घात होनेसे प्रकाश भी हना जाता है। और जिसमें जो है उसके घात होनेसे उस आधारका भी घात होता है जैसे प्रकाशका घात होनेसे दीपक भी हना जाता है । जो जिसमें नहीं है वह उसके घात होनेसे नहीं हना जाता जैसे घटका घात होनेसे दीपक नहीं हना जाता । तथा जिसमें जो नहीं है वह उसके घात होनेसे नहीं हना जासकता । जैसे घड़ेमें दीपकका घात होनेसे घड़ा नहीं
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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