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________________ ४६० रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [सर्वविशुद्धज्ञानयथा सेटिका तु न परस्य सेटिका सेटिका च सा भवति । तथा दर्शकस्तु न परस्य दर्शको दर्शकः स तु ॥ ३५७ ॥ यथा सेटिका तु न परस्य सेटिका सेटिका च सा भवति । तथा संयतस्तु न परस्य संयतः संयतः स तु ॥ ३५८॥ यथा सेटिका तु न परस्य सेटिका सेटिका च सा भवति । तथा दर्शनं तु न परस्य दर्शनं दर्शनं तत्तु ॥ ३५९ ॥ एवं तु निश्चयनयस्य भाषितं ज्ञानदर्शनचरित्रे। शृणु व्यवहारनयस्य च वक्तव्यं तस्य समासेन ॥ ३६० ॥ यथा परद्रव्यं सेटयति खलु सेटिकात्मनः खभावेन । . रूपं सम्यग्दर्शनं श्रद्धेयस्य बहिर्भूतजीवादिपदार्थस्य निश्चयनयेन श्रद्धानकारकं न भवति, तन्मयं न भवतीत्यर्थः । तर्हि किं भवति ? सम्यग्दर्शनं सम्यग्दर्शनमेव स्वस्वरूपे तिष्ठतीत्यर्थः। एवं तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षणसम्यग्दर्शनमुख्यत्वेन गाथा गता। एवं तु णिच्छयणयस्स भासिदं णाणदंसणचरित्ते एवं पूर्वोक्तगाथाचतुष्टयेन भाषितं व्याख्यानं कृतं । कस्य संबंधित्वेन ? निश्चयनयस्य । क विषये ? ज्ञानदर्शनचारित्रे । सुणु ववहारणयस्स य वत्तव्वं इदानी हे शिष्य ! शृणु समाकर्णय । किं ? वक्तव्यं व्याख्यानं । कस्य. संबंधित्वेन ? है अन्य नहीं । इसतरह आत्माका ज्ञान हुआ आत्मा ही है ज्ञान कुछ जुदा द्रव्य नहीं है। ऐसे परमार्थरूप तत्त्वसंबंधके जीवित ( विद्यमान ) होनेपर आत्मा पुद्गलादिका होवे तो पुद्गलादिक ही होना चाहिये। ऐसा होनेपर आत्माके स्वद्रव्यका उच्छेद ( अभाव) हो जायगा पुद्गलद्रव्य ही ठहरेगा आत्मा अलग द्रव्य नहीं सिद्ध होगा। सो ऐसा होता नहीं है अर्थात् द्रव्यका अभाव नहीं होता। क्योंकि अन्य द्रव्यको पलटकर अन्य द्रव्य होनेका निषेध तो पहले ही कह आये है । इसलिये चेतयिता आत्मा पुद्गलादिक परद्रव्यका नहीं होता । यहां पूछते हैं कि, चेतयिता आत्मा पुद्गलादि परद्रव्यका नहीं है तो किसका है ? उसका उत्तर-चेतयिताका ही चेतयिता है । फिर पूछते हैं कि वह दूसरा चेतयिता कोनसा है जिसका यह चेतयिता है ? उसका उत्तर-चेतयितासे अन्य कोई चेतयिता तो नहीं है । तो क्या है ? वहां कहते हैं कि, स्वस्वामि अंश हैं वे अन्य कहे जाते हैं। वहां पर कहते हैं यहां निश्चयनयमें स्वस्वामी अंशके व्यवहारकर क्या लाभ . है ? कुछ भी नहीं। इसलिये यह सिद्ध हुआ कि ज्ञायक है वह निश्चयकर अन्य किसीका ज्ञायक नहीं है आप ही ज्ञायक है ऐसा निश्चय है ॥ अब जैसा ज्ञायक दृष्टांतदाटीतकर कहा वैसा ही दर्शकको कहते हैं। वहां खडिया प्रथम तो श्वेत गुणकर भरे स्वभाववाली द्रव्य है उसकर व्यवहारसे श्वेत करने योग्य कुटी आदि परद्रव्य है। सो सेटिका और कुटी आदि परद्रव्य इन दोनोंका यहां परमार्थ तत्त्वरूप संबंध विचारते
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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