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________________ -8 प्रस्तावना - - प्रियविज्ञपाठको ! मैं श्रीजिनेंद्रदेवकी कृपासे आज आपके सन्मुख श्रीसमयसार भी तीन टीकाओं सहित उपस्थित करता हूं। यह भी प्रसिद्ध नाटकत्रयीमेंसे सम्यग्ज्ञानकी प्रधानताका निरूपक ग्रंथ है और वह द्वितीय श्रुतस्कंधके नामसे प्रसिद्ध है। इसीसे जैनसंप्रदायमें परम आदरणीय है । इस ग्रंथके होनेका संबंध भाषाकारने ऐसा लिखा है-"श्रीवर्धमानस्वामी अंतिम तीर्थकर देव सर्वज्ञ वीतराग परमभट्टारकके निर्वाण जानेके वाद पांच श्रुतकेवली हुए, उनमें अंतके श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्खामी हुए। वहांतक तो द्वादशांगशास्त्रके प्ररूपणसे व्यवहार निश्चयात्मक मोक्षमार्ग यथार्थ प्रवर्तता ही रहा, पीछे कालदोषसे अंगोंके ज्ञानकी व्युच्छित्ति होती गई । कितने ही मुनि शिथिलाचारी हुए उनमें श्वेतपट हुए । उनोंने शिथिलाचार पोषनेको जुदे सूत्र बनाये । उनमें शिथिलाचार पोषनेकी अनेक कथायें लिख अपना संप्रदाय दृढ किया। वह अबतक प्रसिद्ध है। और जो जिनसूत्रकी आज्ञामें रहे, उनका आचार भी यथावत् रहा प्ररूपणा भी यथावत् रही वे दिगंबर कह लाये । उनके संप्रदायमें श्रीवर्धमानको निर्वाण ( मोक्ष ) पधानेपर छहसौ तिरासी वर्ष वाद दूसरे भद्रबाहुस्वामी आचार्य हुए । उनकी परिपाटीमें कितने एक वर्ष वाद मुनि हुए, उन्होंने सिद्धांतोंकी प्रवृत्ति की । उसे लिखते हैं एक तो धरसेन नामा मुनि हुए, उनको आग्रायणी पूर्वके पांचवें वस्तु अधिकारके महाकर्मप्रकृति नामा चौथे प्राभृतका ज्ञान था। यह प्राभृत भूतबली और पुष्पदंत नामके दो मुनियोंको पढाया । पश्चात् उन दोनों मुनियोंने आगामी कालदोषसे बुद्धिकी मंदता जान उस प्राभृतके अनुसार षदखंडसूत्र रच पुस्तकरूप लिखाकर उनकी प्रवृत्ति की । उसके वाद जो मुनि हुए उन्होंने उन्हीं सूत्रोंको पढकर उनकी टीका विस्तार रूप कर धवल, महाधवल, जयधवल आदि सिद्धांत रचे । उनको पढकर श्रीनेमिचंद्र आदि आचार्योंने गोमटसार, लब्धिसार क्षपणासार आदि शास्त्रोंकी प्रवृत्ति की । यह तो प्रथम सिद्धांतकी उत्पत्ति है । इनमें तो जीव और कर्मके संयोगसे हुआ जो आत्माका संसार पर्याय उसका विस्तार गुणस्थान मार्गणारूप संक्षेपकर वर्णन है। यह तो पर्यायार्थिक नयको प्रधानकर कथन है । इसी नयको अशुद्धद्रव्यार्थिक भी कहते हैं तथा अध्यात्मभाषाकर अशुद्धनिश्चय व व्यवहार कहते हैं। दूसरे गुणधर नामा मुनि हुए। उनको ज्ञानप्रवादपूर्वके दशम वस्तुके तीसरे प्राभृतका ज्ञान था । उस प्राभृतको नागहस्ती नामा मुनिने पढा । उन दोनों मुनियोंसे यतिनायक नामा मुनिने उस प्राभृतको पढ उसकी चूर्णिका रूप छह हजार सूत्रोंका
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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