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________________ ३६४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । [बंधएवं ववहारणओ पडिसिद्धो जाण णिच्छयणयेण । पिच्छयणयासिदा पुण मुणिणो पावंति णिव्वाणं ॥ २७२ ॥ एवं व्यवहारनयः प्रतिषिद्धो जानीहि निश्चयनयेन । निश्चयनयाश्रिताः पुनः मुनयः प्राप्नुवंति निर्वाणं ॥ २७२ ॥ आत्माश्रितो निश्चयनयः, पराश्रितो व्यवहारनयः । तत्रैवं निश्चयनयेन पराश्रितसमस्तमध्यसानं बंधहेतुत्वेन मुमुक्षोः प्रतिषेधयता व्यवहारनय एव किल प्रतिषिद्धः, तस्यापि पराश्रितत्वाविशेषात् । प्रतिषेध्य एवं चायं, आत्माश्रितनिश्चयनयाश्रितानामेव मुच्यमानत्वात्, पराश्रितव्यवहारनयस्यैकांतेनामुच्यमानेनाभव्येनाश्रियमाणत्वाच ॥ २७२ ॥ विकल्पात्मकव्यवहारनयो हि बाध्यत इति कथनमुख्यत्वेन गाथाषट्कपर्यंत व्याख्यानं करोति;एवं ववहारणओ पडिसिद्धो जाण णिच्छयणयेण एवं पूर्वोक्तप्रकारेण परद्रव्याश्रितत्वाद् व्यवहारनयः प्रतिषिद्ध इति जानीहि । केन कर्तृभूतेन ? शुद्धात्मद्रव्याश्रितनिश्चयनयेन । कस्मात् ? णिच्छयणयसल्लीणा मुणिणो पावंति णिव्वाणं निश्चयनयमालीना आश्रिताः स्थिताः संतो मुनयो निर्वाणं लभंते यतः कास्णादिति । किं च यद्यपि प्राथमिकापेक्षया प्रारंभप्रस्तावे सविकल्पावस्थायां निश्चयसाधकत्वाद् व्यवहारनयः सप्रयोजनस्तथापि विशुद्धज्ञानदर्शनलक्षणे शुद्धात्मनि स्थितानां निष्प्रयोजन इति भावार्थः । कथं नि आगे इसी अर्थको गाथामें कहते हैं;-[एवं ] पूर्वकथितरीतिसे [व्यवहारनयः] अध्यवसानरूप व्यवहारनय है वह [ निश्चयनयेन ] निश्चयनयसे [प्रतिषिद्धः] निषेधरूप [ जानीहि ] जानो [ पुनः] जो [ मुनयः ] मुनिराज [निश्चयनयाश्रिताः] निश्चयके आश्रित हैं वे [निर्वाणं ] मोक्षको [ प्राप्नुवंति] पाते हैं । टीका-यहां निश्चयनय आत्माके आश्रित है और परके आश्रित व्यवहार नय है । सो जैसे परके आश्रित समस्त अध्यवसान पर और आपको एक मानना वह बंधका कारण होनेसे मोक्षके इच्छकको छुडाता जो निश्चयनय उसकर उसीतरह निश्चयनयसे व्यवहार नय ही छुडाया है। इसकारण जैसे अध्यवसान पराश्रित है उसीतरह व्यवहारनय भी पराश्रित है इसमें विशेष नहीं है । इसलिये ऐसा सिद्ध हुआ कि यह व्यवहारनय प्रषेधने योग्य ही है क्योंकि जो आत्माश्रित निश्चयनयके आश्रित पुरुष हैं उनके ही कर्मोंसे छूटनापन है । और पराश्रित व्यवहारनयके तो एकांतसे कर्मसे नहीं छूटनेवाले अभव्यकर भी आश्रीयमाणपन है ॥ भावार्थ-आत्माके परके निमित्तसे अनेक भाव होते हैं वे सब व्यवहारनयके विषय हैं इसलिये व्यवहारनय तो पराश्रित है और जो १ णिच्छयणयसल्लीणा पाठोयं तात्पर्यवृत्तौ ।
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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