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________________ अधिकारः ३] समयसारः । २२९ भावः, परभावेनाज्ञाननाम्ना कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्तिरोधीयते परभावभूतमलावच्छन्नश्वेतवस्त्रस्वभावभूतश्वेतखभाववत् । ज्ञानस्य चारित्रं मोक्षहेतुः स्वभावः, परभावन कषायनाना कर्ममलेनावच्छन्नत्वात्तिरोधीयते परभावभूतमलावच्छिन्नश्वेतवस्त्रस्वभावभूतश्वेतस्वभाववत् । अतो मोक्षहेतुतिरोधानकरणात् कर्म प्रतिषिद्धं ॥ १५७ । १५८ । १५९ ॥ मेलना संबंधस्तेनच्छन्नः । तथैवाज्ञानमलेनोच्छन्नो मोक्षहेतुभूतो जीवस्य ज्ञानगुणो नश्यतीति ज्ञातव्यं । वस्त्रस्य श्वेतभावो यथा नश्यति मलविमेलना, मलस्य विशेषेण मेलना संबंधस्तेन च्छन्नः । तथा कषायकर्ममलेनोच्छन्नो मोक्षहेतुभूतो जीवस्य चारित्रगुणो नश्यतीति ज्ञातव्यं । इति मोक्षहेतुभूतानां सम्यक्त्वादिगुणानां मिथ्यात्वाज्ञानकषायप्रतिपक्षैः प्रच्छादनकथनरूपेण गाथात्रयं गतं ॥ १५७ । १५८ । १५९ ॥ अथ कर्म स्वयमेव बंधहेतुः कथं मोक्षकारणं भव [ मलमेलनासक्तः ] मलके मेलसे लिप्त हुआ [ नश्यति ] नष्ट हो जाता है [ तथा ] उसी तरह [अज्ञानमलावच्छन्नं ] अज्ञानमलकर व्याप्त हुआ [ज्ञानं ] आत्माका ज्ञानभाव [ज्ञातव्यं भवति ] आच्छादित होता है ऐसा जानना चाहिये ॥ तथा [ यथा ] जैसे [ वस्त्रस्य श्वेतभावः ] कपड़ेका सफेदपन [ मलमेलनासक्तः ] मलके मिलनेसे व्याप्त हुआ [ नश्यति ] नष्ट हो जाता है [तथा ] उसी तरह [कषायमलावच्छन्नं ] कषायमलकर व्याप्त हुआ [चारित्रं अपि ] आत्माका चारित्र भाव भी [ज्ञातव्यं ] आच्छादित हो जाता है ऐसा जानना चाहिये ॥ टीका-ज्ञानमें सम्यक्त्व है वह मोक्षका कारणरूप स्वभाव है । यह सम्यक्त्व, परभावस्वरूप मिथ्यात्वकर्ममैलकर व्याप्तपनेसे आच्छादित हो जाता है । जैसे परभावभूत मैल (रंग) कर सहित हुआ सफेद वस्त्र उसका स्वभावभूत सफेद स्वभाव आच्छादित हो जाता है उसी तरह । ज्ञानका ज्ञान है वह मोक्षका कारणरूप स्वभाव है वह परभावरूप अज्ञाननामा कर्मरूपी मलकर व्याप्तपनेसे आच्छादित किया जाता है जैसे परभावरूप मैल ( रंग ) कर व्याप्त हुआ श्वेतवस्त्रका स्वभावभूत सफेदपन आच्छादित होता है उसी तरह ॥ और ज्ञानके चारित्र है वह भी मोक्षका कारणरूप स्वभाव है वह परभावस्वरूप कषायनामा कर्मरूपी भैल कर व्याप्तपनेसे आच्छादित किया जाया है जैसे परभावरूपमैल (रंग) कर व्याप्त हुआ सफेद कपड़ेका स्वभावभूत सफेदपन आच्छादित किया जाता है उसी तरह ॥ इसलिये मोक्षके कारण जो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र हैं उनका आच्छादन करनेसे कर्मका निषेध किया गया है ॥ भावार्थ-सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्ररूप ज्ञानके परिणमनस्वरूप मोक्षमार्गके प्रतिबंधक ( रोकनेवाले ) मिथ्यात्व . अज्ञान कषायरूपी कर्म हैं । ये कर्म उस मोक्षके कारणभावोंको आच्छादित करते हैं इसलिये कर्मका निषेध है ॥ १५७।१५८।१५९ ॥
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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