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________________ समयसारः । १६५ कल्पव्यापारयोः कदाचिदज्ञानेन करणादात्मापि कर्तास्तु तथापि न परद्रव्यात्मककर्मकर्ता स्यात् ॥ १००॥ ज्ञानी ज्ञानस्यैव कर्ता स्यात् ; जे पुग्गलदव्वाणं परिणामा होति णाणआवरणा। ण करेदि ताणि आदा जो जाणदि सो हवदि गाणी ॥ १०१॥ ये पुद्गलद्रव्याणां परिणामा भवंति ज्ञानावरणानि । न करोति तान्यात्मा यो जानाति स भवति ज्ञानी ॥ १०१॥ ये खलु पुद्गलद्रव्याणां परिणामा गोरसव्याप्तदधिदुग्धमधुराम्लपरिणामवत्पुद्गलद्रव्यदविज्ञानाभावाद्यदा काले शुद्धबुद्धैकस्वभावात्परमात्मस्वरूपाद्भष्टो भवति तदा स जीवस्तयोर्योगोपयोगयोः कदाचित्कर्ता भवति । न सर्वदा । अत्र योगशब्देन बहिरंगहस्तादिव्यापारः उपयोगशब्देन चांतरंगविकल्पो गृह्यते । इति परंपरया निमित्तरूपेण घटादिविषये जीवस्य कर्तृत्वं स्यात् । यदि पुनः मुख्यवृत्त्या निमित्तकर्तृत्वं भवति तर्हि जीवस्य नित्यत्वात् सर्वदैव कर्मकर्तृत्वप्रसंगात् मोक्षाभावः । इति व्यवहारव्याख्यानमुख्यत्वेन गाथात्रयं गतं ॥ १०॥ अथ वीतरागस्वसंवेदनज्ञानी ज्ञानस्यैव कर्ता न च परभावस्येति कथयति;-जे पुग्गलव्वाणं परिणामा होति णाणआवरणा ये कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलपरिणामाः पर्याया ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मरूपा भवंति ण करेदि ताणि आदा तान् पर्यायान् व्याप्यव्यापकभावेन मृत्तिकाकलशमिवात्मा न करोति गोरसाध्यक्षवत् जो जाणदि सो हवदि णाणी इति यो विकाररूप परिणाम है। इन दोनोंका कदाचित्काल अज्ञानसे इनको करनेसे इनका आत्माको भी कर्ता कहा जाता है। परंतु परद्रव्यस्वरूप कर्मका तो कर्ता कभी भी नहीं है ॥ भावार्थ-आत्माके योग उपयोग, घटादि तथा क्रोधादिकको निमित्त हैं उनको तो उनका निमित्तकर्ता कहा जासकता है परंतु आत्माको उनका कर्ता नहीं कहा जासकता । तथा आत्माको योगउपयोगका कर्ता संसारअवस्थामें अज्ञानसे कहते हैं। यहां तात्पर्य ऐसा है कि, द्रव्यदृष्टिकर तो कोई द्रव्य अन्य किसी द्रव्यका कर्ता नहीं है परंतु पर्यायदृष्टिकर किसी द्रव्यका पर्याय किसी समय किसी अन्य द्रव्यके पर्यायको निमित्त होता है। इस अपेक्षासे अन्यके परिणाम अन्यके परिणामके निमित्तकर्ता कहे जाते हैं परंतु परमार्थसे द्रव्य अपने परिणामका कर्ता है अन्यके परिणामका अन्यद्रव्य कर्ता नहीं है ऐसा जानना ॥ १० ॥ आगे ऐसा कहते हैं कि ज्ञानी ज्ञानका ही कर्ता है,-[ये] जो [ज्ञानावरणानि ] ज्ञानावरणादिक [ पुद्गलद्रव्याणां ] पुद्गलद्रव्योंके [परिणामाः ] परिणाम [ भवंति ] हैं [ तानि ] उनको [ आत्मा ] आत्मा [ न करोति ] नहीं करता
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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