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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । पुद्गलद्रव्यस्वामित्वाभावात् द्रव्येंद्रियावष्टंभेन शब्दाश्रवणात् स्वभावतः क्षायोपशमिकभावाभावाद्भावेंद्रियावलंबन शब्दाश्रवणात् सकलसाधारणैक संवेदनपरिणामस्वभावत्वात् केवलशब्दवेदनापरिणामापन्नत्वेन शब्दाश्रवणात् सकलज्ञेयज्ञायकतादात्म्यस्य निषेधाच्छब्दपरिच्छेदपरिणतत्वेपि स्वयं शब्दरूपेणापरिणमनाच्चाशब्दः । द्रव्यांतरारब्धशरीरसंस्थानेनैव संस्थान इति निर्देष्टुमशक्यत्वात् नियतस्वभावेनानियतसंस्थानानंतशरीरवर्तित्वात्संस्थाननामकर्मविपाकस्य पुद्गलेषु निर्दिश्यमानत्वात् प्रतिविशिष्टसंस्थानपरिणतसमस्त वस्तुतत्त्व संवलितसहजसंवेदनशक्तित्वेपि स्वयमखिललोकसंवलनशून्योपजायमाननिर्मलानुभूतितयात्यंतम संस्थानत्वाच्चानिर्दिष्टसंस्थानः । षट्द्रव्यात्मकलोकाद् ज्ञेयाद्व्यक्तादन्यत्वात्कषाय चक्राद्भावकाद्व्यक्तादन्यत्वाच्चित्सामान्यनिमग्नसमस्त व्यक्तित्वात् क्षणिकव्यक्तिमात्राभावात् व्यक्ताव्यक्तविमिश्रप्रतिभासेपि व्यक्तास्पर्शत्वात् स्वयमेव हि बहिरंतःस्फुटमनुभूयमानत्वेपि व्यक्तोपेक्षणेन प्रद्योतमानत्वाच्चाव्यक्तः । रसरूपगंधस्पर्शशब्द संस्थानव्यक्तत्वाभावेपि स्वसंवेदन - बलेन नित्यमात्मप्रत्यक्षत्वे सत्यनुमेय मात्रत्वाभावाद लिंगग्रहणः । समस्तविप्रत्तिपत्तिप्रमानसुखवीर्यश्च यः स एव शुद्धात्मा समस्तपदार्थसर्वदेश सर्वकालब्राह्मणक्षत्रियादिनानावर्णभेदभिन्नजनसमस्तमनोवचनकायव्यापारेषु दुर्लभः स एवापूर्वः सचैवोपादेय इति मत्वा निर्विकल्पनि ९२ विपाक ( फल ) है वह भी पुद्गलद्रव्य में ही है उसके निमित्त से भी आकार नहीं कह सकते । ३ । जुदे जुड़े आकाररूप परिणमते जो समस्त वस्तु उनके स्वरूपसे तदाकार हुआ जो अपना स्वभावरूप संवेदन उस शक्तिरूपपना इसमें होनेपर भी आप समस्त लोकके मिलापकर शून्य हुई जो अपनी निर्मल ज्ञानमात्र अनुभूति उस अनुभूतिपनेकर किसी भी आकाररूप नहीं है इस कारण भी अनिर्दिष्ट संस्थान है । ४ । ऐसें चार हेतुओं से संस्थानका निषेध कहा || अब अव्यक्त विशेषणको सिद्ध करते हैं—छह द्रव्य स्वरूप लोक है वह ज्ञेय है व्यक्त है ऐसे व्यक्तरूपसे जीव अन्य है इसलिये अव्यक्त है । १ । कषायका समूह जो भावकभाव वह व्यक्त है उससे जीव अन्य है इस कारण भी अव्यक्त है । २ । चित्सामान्यमें चैतन्यकी सब व्यक्तियां अंतर्भूत हैं इसलिये भी अव्यक्त है । ३ । क्षणिक व्यक्तिमात्र भी न होनेसे भी अव्यक्त कहना चाहिये । ४ । व्यक्त, अव्यक्त और दोनों मिले हुए मिश्र भाव इसके प्रतिभास में आते हैं तो भी केवल व्यक्त भाव ही नहीं स्पर्शता इस कारण भी अव्यक्त है । ५ । और आप ही बाह्य अभ्यंतर प्रगट अनुभूयमान है तौ भी व्यक्त भावसे उदासीन ( दूरवर्ती ) प्रद्योतमान है इस कारण भी अव्यक्त कहा जाता है । ६ । इसतरह छह हेतुओंकर अव्यक्तभाव सिद्ध किया । इसीतरह रूप, रस, गंध स्पर्श, शब्द, संस्थान व्यक्तपनाका अभाव स्वरूप होनेपर भी स्वसंवेदन के बलकर आप प्रत्यक्ष गोचर होनेसे अनुमान गोचरमात्रपने के अभावसे अलिंगग्रहण कहा जाता है । अपने अनुभव में आवे ऐसे चेतना गुणकर सदा
SR No.022398
Book Titlesamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddhar Karyalay
Publication Year1919
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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