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________________ ॥प्रस्तावना ॥ विश्व के पदार्थो का आरपार आकलन करने के लिए तत्पर बनी हुइ मानवीय प्रज्ञा जहाँ थकती है और हमेशा के लिए रुकती है वह एक दर्शन बन जाता है। __और अतीन्द्रियज्ञान के बल से जहां थकना या रुकना होता ही नही है वैसी इश्वरीय-कैवल्यप्रज्ञा पदार्थके अणु अणु को हर दिशासे आलोकित करके प्रस्तुत करती है वह सम्यग्दर्शन बन जाता है। ___ दर्शन की भाषा में एक विरामस्थल होता है, जब कि सम्यग्दर्शन की भाषा में एक विश्रामस्थल होता है... ____ विराम लेने के बाद मार्ग और दिशाए मुद्रित हो जाते है। विश्राम में सहस्त्रमार्गो और अनंत दिशाए खुले हुए ही रह जाते है.... _ विराम में भी रुकना है विश्राम में भी रुकना है, दोनो रुकावट मे महदन्तर है, 'विराम' वो शाश्वत रोक है और 'विश्राम' वो मुसाफिर का आराम है... नय और दुर्नयमें कुछ ऐसा ही फर्क है। दुर्नय के पास जो एकांत है वो विराम की भूमिकावाला है, नय के पास भी एकांत है लेकिन वो है विश्राम की भूमिका से.... नय का अर्थ है-एक दिशा में विकसित द्रष्टिकोण। सर्व द्रष्टिकोणीय संग्रहज्ञान, उसे प्रमाण कहते है... नय और प्रमाण सम्यग्दर्शन है। सर्वज्ञ शासन की मध्यस्थता परमोच्च है, केवल स्वदर्शनमें प्रस्तुत दृष्टिकोण को ही नय-उपाधि देना वैसा पक्षपात नही। परदर्शन में भी अगर कदाग्रह से मुक्त दृष्टिकोण है तो उसे भी नय कहने मे जैनशासन को तनीक भी संकोच नही.... ___ स्वदर्शन और परदर्शन का भेद स्वरूप से है जब कि नय और दुर्नय का भेद तो अध्यवसाय के आधार से निर्णीत होता है.... कदाग्रह-मुक्त अध्यवसाय दृष्टि मे नयत्व का निखार ला देता है... ___ नय जब भाषा में परिणत होता है तब उसमें पदार्थो की समग्रता प्रति गुप्त विनय होता है.... तादृश भाषा के वाक्य भेदोंका समावेश उसे सप्तभंगी कहते है... सप्तभंगी का प्रत्येक वाक्य नयरूप है और संपूर्ण सप्तभंगी प्रमाण रूप है... COMMMMMMMMMMMMMMMMMANAMAN III
SR No.022396
Book TitleSaptbhangi Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTirthbodhivijay
PublisherBorivali S M P Jain Sangh
Publication Year2016
Total Pages156
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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