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________________ उत्पन्न करने में असमर्थ हैं। रूप आदि अर्थ का प्रकाशन फल है। वह क्रिया रूप है इसलिये प्रकाशनक्रिया भी व्यापार और करण के बिना नहीं हो सकती। लकडी का कटना फल रूप अचेतन क्रिया है, कुल्हाडो करण है और उठाना गिराना व्यापार है। कुल्हाडी उठाना गिराना और कटना तीनों अचेतन हैं। अर्थ प्रकाशन रूप क्रिया, और उसका करण ज्ञान, व्यापार रूप भी है। आत्मा के उपयोग रूप व्यापार को स्पष्ट करने के लिये ग्रन्थकार कहते हैं मूलम्-न ह्यव्यापत आत्मा स्पर्शादिप्रकाशको भवति, निर्यापारेण कारकेण क्रियाजननायोगात् , मसूणतूलिकादिसन्निकर्षेग सुषुप्तस्यापि तत्प्रसङ्गाच। ___ अर्थ-व्यापार के बिना आत्मा स्पर्श आदि का प्रकाशक नहीं होता। व्यापार से रहित कारक क्रिया के उत्पन्न करने में असमर्थ होता है। यदि व्यापार के बिना भी कारक क्रिया को उत्पन्न करे तो सुषुप्ति में भी आत्माको कोमल तूलिका आदि के सम्बन्ध से ज्ञान हो जाना चाहिए। विवेचना-त्वचा आदि के सम्बन्ध से यदि बिना व्यापार के ज्ञान हो तो आत्मा को सुषुप्ति में भी ज्ञान होना चाहिये। आत्मा जब सुषुप्ति में रहता है तब ज्ञान रूप व्यापार से शून्य रहता है । इससे सिद्ध है ज्ञान रूप व्यापार के बिना आत्मा त्वचा के साथ तूलिका का स्पर्श होने पर भी स्पश का प्रकाशन नहीं करता।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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