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________________ में प्रत्यक्ष कर सकता है। तीन काल के पर्यायों का अभेद होने पर भी जब द्रब्य का प्रत्यक्ष होताहै तब सभी का प्रत्यक्ष नहीं होता । इसका कारण इन्द्रियों का सामर्थ्य है । जो वर्तमान काल में है उसीका ज्ञान इन्द्रियों से हो सकता है । इन्द्रियों का स्वभाव इसी प्रकार का है जिन पर्यायों को इन्द्रिय नहीं जान सकते, उनके साथ द्रव्य का अभेद यदि प्रत्यक्ष न हो, तो वह अविद्यमान नहीं सिद्ध हो सकता। नेत्रसे पका दर्शन होता है। जब फूल का रूप दिखाई देता है । तब स्पश और गन्ध को होने पर भी नेत्र नहीं जान सकते । इतनेसे फूल में जब रूप है तब स्पर्श और गन्ध का अभाव नहीं सिद्ध होता । यदि अनुगामो द्रव्य न हो तो प्रथम पर्याय के नष्ट होने पर अन्य पर्याय नहीं उत्पन्न होना चाहिए । उपादान बीज के न होने पर अंकुर पर्याय नहीं उत्पन्न होता । पर्याय का अभेद द्रव्य के प्रत्यक्ष का सांधन नहीं है । प्रत्यक्ष के साधन इन्द्रिय हैं और ये अपने स्वभाव के अनुसार अर्थ का प्रत्यक्ष करते हैं । स्मरण और प्रत्यभिज्ञान की सहायतासे आत्मा भूत और भावी पर्यायों को और उनसे अभिन्न द्रव्यों को जान लेता है। ___ध्यान रहे, द्रव्य का अनुगामी अक्षणिक स्वरुप काल की अपेक्षासे प्रतीत होता है । काल इस स्वरूप को उत्पन्न नहीं करता। अर्थ, बौद्ध मत के अनुसार क्षणिक है पर वर्तमान काल अर्थ में क्षणिकता को उत्पन्न नहीं करता । यदि काल बर्तमान अर्थ में क्षणिकता को उत्पन्न करता हो, तो वर्तमान काल की क्षणिकता को सत्पन्न करने के लिए किसी अन्य काल को कारण मानना पडेगा । इस प्रकार अनवस्था हो जायगी। इससे बचने के लिए अर्थ के यथार्थ स्वभाव का आश्रय लेना होगा। जिस प्रकार अर्थ स्वभाव से जिस क्षण में उत्पन्न होता है वह क्षण पूर्व और उत्तर भावसे रहित होता है । क्षण के साथ संबंध होनेसे अर्थ क्षणिक कहा जाता है इसी प्रकार अनेक क्षणों के साथ अर्थ का संबंध है इसके कारण अर्थ अक्षणिक कहा जाता है।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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