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________________ ३७९ विवेचना:-बौद्ध लोग कहते हैं-सत्त्वधर्म वस्तु का सत्य है असत्त्व सत्य नहीं है, किन्तु कल्पना के द्वारा प्रतीत होता है । काल्पनिक धर्म वस्तु का स्वरूप नहीं हो सकता । मरुस्थल में कल्पना के द्वारा जल प्रतीत होता है। वास्तव में मरुभूमि के साथ जल का सम्बन्ध नहीं होता । असत्त्व भी कल्पना से प्रतीत होता है इसलिये वास्तव में वस्तु असत् नहीं हो सकती। यह कथन युक्त नहीं है। बिना किसी बाधा के जिस प्रकार सत्त्व का अनुभव होता है इस प्रकार असत्त्व का भी। यदि कल्पना के ही कारण असत्त्व की प्रतीति हो तो प्रत्येक अर्थ अन्य अर्थों के रूप में प्रतीत होना चाहिए। पर देश काल आदिके द्वारा घट का असत्त्व यदि वास्तव न हो, तो घट अन्य देश में और अन्य काल में भी प्रतीत होना चाहिये। वह जिस प्रकार पार्थिवरूप में प्रतीत होता है इस प्रकार जलीय रूप में अथवा अग्नि आदिके रूप में भी प्रतीत होना चाहिये । एक अर्थ को समस्त वस्तु. ओं के रूप में हो जाना चाहिये । मरुस्थल में दूर से ग्रीष्म ऋतु में जल दिखाई देता है परन्तु पास जाने पर जल नहीं मिलता और उसको पीकर प्यास नहीं दूर होती। इस बाधक ज्ञान के कारण मरुस्थल में जल का ज्ञान कल्पना से उत्पन्न सिद्ध होता है परन्तु पर द्रव्य, देश, काल आदिके रूप में असत्रूप के ज्ञान को बाधित करनेवाला कोई ज्ञान नहीं है इसलिए वस्तु का असत् रूप कल्पना से सिद्ध नहीं है । असत्रूप के सत्य नहीं काल्पनिक होने में आपत्ति है, इसलिये असत् रूप भी सत्य है। इस पर बौद्ध कहते हैंपर द्रव्य, क्षेत्र आदिके रूप में जो असत्त्व प्रतीत होता है वह स्व द्रव्य आदिकी अपेक्षा से प्रतीत होनेवाले सत्त्व
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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