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________________ ३०६ के अभाव में नहीं हो सकता, अतः अग्नि को सिद्ध करता है । मूलम्:- कश्चित्कारणरूपः, यथा वृष्टिर्भविष्यति, विशिष्टमेघान्यथानुपपत्तेरित्यत्र मेघविशेषः, स हि वर्षस्य कारणं स्वकार्यभूतं वर्षं गमयति । I अर्थ:- कोई हेतु कारणरूप होता है । जिस प्रकार विशिष्ट मेघ बिना वर्षा किये नहीं रह सकता, अतः वृष्टि होगी । इस अनुमान में मेघ विशेष हेतु है । वह वर्षा का कारण है और अपनी कार्य वर्षा की अनुमिति को कराता हैं। , मूलम्:- ननु कार्याभावेऽपि सम्भवत् कारणं न कार्यानुमापकम् अत एव न वह्निनधू मं गमयतीति चेत्; सत्यम्: यस्मिन्सामर्थ्याप्रतिबन्धः कारणान्तरसाकल्यं च निश्चेतुं शक्यते, तस्यैव कारणस्य कार्यानुमापकत्वात् । अर्थ :- शंका करता है, कार्य के अभाव में भी कारण रह सकता है, अतः वह कार्य की अनुमिति नहीं करा सकता । इसी लिये वह्नि धूम की सिद्धि नहीं करती । उत्तर में कहता है, सत्य है; जिस कारण में सामर्थ्य का प्रतिबन्ध नहीं है और अन्य कारणों की संपूर्णता भी है
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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