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________________ २२३ करता है। पक्ष में सत्ता के बिना जो साध्य के साय व्याप्ति हो, तो हेतु साध्य की सिद्धि कर सकता है। मूलम:- ननु यावं पक्षधमताऽनुमितो नाग तदा कथं तत्र पक्षभाननियम इति चेत् अर्थः-शंका करते हैं-इस रीति से पक्षधर्मता यदि अनुमिति में साधन नहीं है, तो अनुमिति में पक्ष की प्रतीति नियम से क्यों होती है। विवेचना:-अनुमिति में पक्ष और साध्य इन दोनों का ज्ञान होता है । व्याप्ति के कारण हेतु से व्यापक साध्य का ज्ञान होता है हेतु में जो पक्षधर्मता है उसके कारण धर्मी पक्षका ज्ञान होना है। धूम से जब वहिन को अनुमिति होती है. तब पर्वत में वाहन की जो अनुमित होती है. उसका कारण धूप की पक्षधर्मता है । पर्वत में धूम है इसलिये पर्वत में अग्नि की सिद्धि होती है। केवल व्याप्ति के बल से धूप पर्वत में ही अग्नि की सिद्धि नहीं कर सकता। मूलम्:-क्वचिदन्यथाऽनुपपत्यवच्छेदकतया ग्रहणात् पक्षभान यथा नभश्चन्द्रास्तित्व विना जलमन्द्रोऽनुपपन्न इत्यत्र, क्वचिच्च हेतुग्रहगाधिकरणतया यथा पवनो वहिमान् धूमवावा. दि यत्र धूपस्य पर्वते ग्रहणाहूंगपि तत्र भानमिति । व्यानिग्रहवेलायां तु पवतस्य सर्व. प्रानुवृत्यभावेन न ग्रह इति ।
SR No.022395
Book TitleJain Tark Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarchandra Sharma, Ratnabhushanvijay, Hembhushanvijay
PublisherGirish H Bhansali
Publication Year
Total Pages598
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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