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________________ पञ्चाध्यायी। [ दूसरा उत्तरसत्वं निस्या तथा शक्तिः शक्तित्वाच्छुडशक्तिवत् । अथान्यथा सतो नाशः शक्तीनां नाशतः क्रमात ॥८॥ अर्थ-आचार्य कहते हैं कि वैभाविक शक्ति वास्तवमें है और वह नित्य है क्योंकि जो २ शक्तियां होती हैं वे सब नित्य ही हुआ करती हैं जिस प्रकार आत्माकी शुद्ध शक्तियां ज्ञाम दर्शवादिक नित्य हैं उसी प्रकार यह भी नित्य है । यदि इस वैभाविक शक्तिको नित्य नहीं माना जाय तो सत् पदार्थका ही नाश हो जायगा । क्योंकि शक्तियों ( गुणों का समूह ही तो पदार्थ है । जब शक्तियोंका ही क्रम २ से नाश होने लगे तो पदार्थ भी अवश्य नष्ट हो जायगा । अंग नाशसे अंगीका नाश अवश्यंभावी है । इस लिये वैभाविक शक्ति आत्माका नित्य गुण है। अशुद्धतामें हेतुकिन्तु तस्यास्तथाभावः शुद्धादन्योन्यहेतुकः। तनिमित्तादिना शुद्धो भावः स्यात्केवलं स्वतः ॥ ८१॥ अर्थ-किन्तु उस वैभाविक शक्तिकी शुद्ध अवस्थासे जो अशुद्ध अवस्था होती है वह दूसरेके निमित्तसे होती है । वह निमित्त जब आत्मासे दूर हो जाता है तब उस शक्तिकी शुद्ध अवस्था हो जाती है। दृष्टान्त नासिडोसौ हि सिद्धान्तः सिद्धः संदृष्टितो यथा। बन्हियोगाजलंचोष्णं शीतं तत्तदयोगतः ॥ ८२॥ अर्थ-दूसरेके निमित्तसे वैभाविक शक्तिका विभाव परिणमन होता है विना निमित्तके उसी शक्तिका स्वभाव परिणमन हो जाता है यह सिद्धान्त असिद्ध नहीं है। यह बात तो दृष्टान्त द्वारा भले प्रकार सिद्ध होती है । यथा अग्निके निमित्तसे जल गरम हो जाता है, और अग्निके दूर होनेपर वही जल अपनी स्वाभाविक शीत अवस्थामें आ जाता है। फिर भी शङ्काकारननु चैवं चैका शक्तिस्तद्भावो विविधो भवेत् । एकः स्वाभाविको भावो भावो वैभाविकोऽपरः ॥ ८३ ॥ चेदवश्यं हि दे शक्ती सतः स्तः का क्षतिः सताम् । स्वाभाविकी स्वभावैः स्वैः स्वैर्विभावैर्विभावजा ॥ ८४ ॥ सद्भावेथाप्यसनावे कर्मणां पुद्गलात्मनाम् ।। अस्तु स्वाभावकी शक्तिः शुद्धैर्भावैर्विराजिता ॥ ८५॥ ..
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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