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________________ २५० ] पञ्चाध्यायी । [ दूसरा अर्थ - यह जीव यद्यपि अनन्तगुणोंका धारी है तथापि एक कहा जाता है । जितना भी पदार्थ समूह है सभी अनन्तगुणात्मक है । भावार्थ - जितने भी पदार्थ हैं सभी अनन्त गुणात्मक हैं । अनन्तगुणात्मक होनेपर भी वे एक एक कहे जाते हैं, एक कहे जानेका कारण मी एक सत्ता गुण है । भिन्न २ सत्ता गुणसे ही पदार्थोंमें भेद होता है । जीव द्रव्य भी अनन्तगुणों का अखण्ड पिण्ड है । भिन्न भिन्न सत्ता रखनेवाले भिन्न भिन्न अनन्तगुणधारी जीव द्रव्य अनन्त हैं । प्रत्येक द्रव्यमें गुणोंकी भेदविवक्षासे होता है और अभेदविवक्षामें अभेद समझा जाता है । वास्तवमें गुण समूह ही द्रव्य है । और वे सभी गुण परस्पर अभिन्न हैं । इसी लिये द्रव्य और गुणोंका तादात्म्य सम्बन्ध है परन्तु नैयायिक दार्शनिक गुण गुणीमें सर्वथा भेद मानते हैं और उन दोनोंका सवाय सम्बन्ध बतलाते हैं, नैयायिक लोगोंका यह सिद्धान्त न्यायकी दृष्टिसे सर्वथा वाधित है क्योंकि वे ही स्वयं ज्ञान और जीवका समवाय कहते हैं और समवाय सम्बन्ध उनके तसेही नित्य होता है फिर उन्हीं के मतानुसार मुक्तात्माका ज्ञान गुण नष्ट हो जाता है। इसलिये उनका सिद्धान्त उनके मतसे ही वाधित हो जाता है। इसी आशयको हृदयमें रखकर ग्रन्थकार परीक्षकोंको सूचना देते हैं 1 अभिज्ञानं च तत्रापि ज्ञातव्यं तत्परीक्षकैः । वक्ष्यमाणमपि साध्यं युक्तिस्वानुभवागमात् ॥ ९४५ ॥ अर्थ -- जीव अनन्तगुणात्मक है इस विषयका विशेष परिज्ञान परीक्षकोंको करना चाहिये, यद्यपि जो हम सिद्ध करना चाहते हैं उसे आगे युक्ति, स्वानुभव और आगम प्रमाणसे कहेंगे तथापि परीक्षकोंको निर्णय कर लेना ही उचित है । जीवके विशेष गुण तद्यथायथं जीवस्य चारित्रं दर्शनं सुखम् | ज्ञानं सम्यक्त्वमित्येते स्युर्विशेषगुणाः स्फुटम् ॥ ९४६ ॥ अर्थ — चारित्र, दर्शन, सुख, ज्ञान, और सम्यक्त्व ये जीवके विशेष गुण हैं । जीवके समान्य गुण - वीर्यं सूक्ष्मवगाहः स्यादव्याबाधश्चिदात्मकः । स्यादगुरुलघुसंज्ञं च स्युः सामान्यगुणा इमे ॥ ९४७ ॥ अर्थ - वीर्य, सूक्ष्म, अवगाह, अन्याबाध और अगुरुलघु ये जीवके सामान्य गुण हैं । भावार्थ- हर एक पदार्थ में सामान्य और विशेष गुण रहते हैं। जो गुण समान रीति से सभी पदार्थोंमें रहते हैं उन्हें सामान्य गुण कहते हैं जैसे अस्तित्व, वस्तुत्व, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व आदि । ये गुण सभी पदार्थोंमें समान हैं तथापि जुदे २ हैं । जो गुण असाधारण 1
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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