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________________ सुबोधिनी टीका । व्याप्ति किसे कहते हैं व्याप्तित्वं साहचर्यस्य नियमः स यथा मिधः । सति यत्र यः स्यादेव न स्यादेवासतीह यः ॥ ८९४ ॥ अर्थ - साहचर्यके नियमको व्याप्ति कहते हैं, वह इस प्रकार है - जिसके होनेपर जो होता है और जिसके नहीं होनेपर जो नहीं होता है, यह व्याप्तिका नियम परस्पर में होता है । अध्याय । ] मा समा रागसद्भावे नूनं बन्धस्य संभवात् । . रागादीनामसद्भावे बन्धस्याऽसंभवादपि ॥ ८९५ ॥ [२३१ अर्थ — यहां पर समव्याप्ति नहीं है, रागके सद्भावमें बन्ध नियमसे होता है और रागादिकोंके अभाव में बन्ध नहीं होता है । विषम व्याप्ति व्याप्तिः सा विषमा सत्सु संविदावरणादिषु । अभावाद्रागभावस्य भावाद्वाऽस्य स्वहेतुतः ॥ ८९६ ॥ I अर्थ - विषम व्याप्ति इस प्रकार है- ज्ञानावरणादि कर्मोंके रहने पर रागभावका अभाव पाया जाता है, अथवा रागादिकका सद्भाव भी पाया जाय तो उसके कारणोंसे ही पाया जायगा, ज्ञानावरणादिके निमित्तसे नहीं । भावार्थ- समव्याप्ति तो तब होती जब कि ज्ञानावरणादिके सद्भावमें रागादि भावोंका भी अवश्य सद्भाव होता, परन्तु ऐसा नहीं होता है, उपशान्तकषाय, क्षीण कषाय गुणस्थानोंमें ज्ञानावरणादि कर्म तो हैं परन्तु वहां पर रागादिभाव सर्वथा नहीं हैं । ग्यारहवें गुण स्थानसे नीचे भी ज्ञानावरणादि कर्मके सद्भावमें ही रागादिभाव नहीं होते हैं किन्तु अपने कारणोंसे होते हैं । परन्तु रागादिभावों के सद्भावमें ज्ञानावरणादि कर्मोका अवश्य ही बन्ध होता है। क्योंकि आयुको छोड़कर सातों ही कर्मों का बन्ध संसारी आत्मा प्रतिक्षण हुआ करता है । उसका कारण आत्माके कषाय भाव ही हैं । जिस प्रकार रागादिके होनेपर ज्ञानावरणादि कर्म होते हैं उस प्रकार ज्ञानावरणादिके होने पर रागभाव भी होते तब तो उभयथा समन्याप्ति बन जाती परन्तु दोनों तरफसे व्याप्त नहीं है किन्तु एक तरफसे ही है इसलिये यह विषम व्याप्ति है । 1 * आयुकर्मका बन्ध प्रतिक्षण नहीं होता है किन्तु त्रिभागमें होता है अर्थात् किसी जीवकी आयु में से दो भाग समाप्त हो जाय एक भाग बाकी रह जाय तब दूसरे भवकी आयुका बन्ध होता है। यदि पहले त्रिभागमें परभवकी आयुका बन्ध न हो तो बची हुई आयुके त्रिभागमें होता है इसी प्रकार आठ त्रिभागों में आयुके बन्धकी संभावना है, कायुबन्धके आठ ही अपकर्षकाल हैं। यदि आठों में न हो तो मरण समय में तो अवश्य ही परभवकी • आयुका बन्ध होता है । आयुके बन्ध सहित आठों कमौका बन्ध होता है।
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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