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________________ अध्याय । ] सुबोधिनी टीका ! [ ७ यहां पर शङ्काकारका आशय यही है कि जिन पदार्थोंका इन्द्रिय प्रत्यक्ष होता है वे ही तो वास्तव में हैं उनसे अलग कोई पदार्थ नहीं है । शङ्काकारका उत्तर नैवं यतः सुखादीनां संवेदनसमक्षतः । नासिद्धं वास्तवं तत्र किंत्वसिद्धं रसादिमत् ॥ ११ ॥ अर्थ - अमूर्त पदार्थकी सत्ता में कोई प्रमाण नहीं है ऐसा शङ्काकारका कहना ठीक नहीं है । क्योंकि सुख दुःखादिकका स्वसंवेदन होनेसे आत्मा भले प्रकार सिद्ध है सुख दुःखादिककाप्रत्यक्ष करनेवाला आत्मा असिद्ध नहीं है परन्तु उसमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श मानना असिद्ध है । वास्तव में इन्द्रियज्ञान मलिन ज्ञान है और इसीलिये यथार्थ दृष्टिसे वह परोक्ष है । उसक विषय भी बहुत थोड़ा और मोटा है । सुक्ष्म पदार्थों का विशद बोध अतीन्द्रिय प्रत्यक्षसे ही होता है | इसलिये जिनका इन्द्रिय ज्ञान होता है वे ही पदार्थ ठीक हैं बाकी कुछ नहीं, ऐसा मानना किसी तरह युक्ति सङ्गत नहीं है । * 1 आत्मा रसादिकसे भिन्न है तद्यथा तद्रसज्ञानं स्वयं तन्न रसादिमत् । यस्माज्ज्ञानं सुखं दुःखं यथा स्थान्न तथा रसः ॥ १३ ॥ 1 अर्थ — ऊपर के श्लोक में रसादिक आत्मासे भिन्न ही बतलाये हैं । उसी बातको यहाँ पर खुलासा करते हैं | आत्मामें जो रसका ज्ञान होता है वह ज्ञान ही है। रस ज्ञान होनेसे ज्ञान रसवाला नहीं हो जाता है क्योंकि रस पुलका गुण है वह जीवमें किस तरह आसकता है । यदि रस भी आत्मामें पाया जाता तो जिस प्रकार ज्ञान, सुख, दुःखका अनुभव होनेसे ज्ञानी सुखी दुःखी आत्मा बन जाता है उसी प्रकार रसमयी भी होजाता परन्तु ऐसा नहीं है । सुखदुःखादिक ज्ञानसे भिन्न नहीं है— नासिद्धं सुखदुःखादि ज्ञानानर्थान्तरं यतः । चेतनत्वात् सुखं दुःखं ज्ञानादन्यत्र न कचित् ॥ १४ ॥ अर्थ —-सुख दुःख आदिक जो भाव हैं वे ज्ञानसे अभिन्न हैं अर्थात् ज्ञान स्वरूप ही हैं। क्योंकि चेतन भावों में ही सुख दुःखका अनुभव होता है ज्ञानको छोड़कर अन्यत्र कहीं सुख दुःखादिकका अनुभव नहीं हो सक्ता । * जो लोग इन्द्रिय प्रत्यक्षको ही मानते हैं उनके परलोक गत जनकादिककी भी सिद्धि नहीं हो सक्ती है जनकादिककी असिद्धता में जन्यजनक सम्बन्ध भी नहीं बनता ।
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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