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________________ पञ्चाध्यायी । [ दूसरी १३६] अर्थ — उपर्युक्त शंकाका उत्तर यह है कि जो मिथ्यादृष्टी है उसीको ही सात प्रकारके भय हुआ करते हैं । जो सम्यग्दृष्टी है उसे कोई भी भय थोडासा भी नहीं छुपाता । भावार्थ -- मिथ्यादृष्टीको ही भय लगे रहते हैं । इसलिये उसे ही भयोंके निमित्तसे शङ्का पैदा होती है । इसलिये मिथ्यात्त्व से ही शंका होती है यह बात सिद्ध हुई । भय कब होता है- परत्रात्मानुभूतैर्वै विना भीतिः कुतस्तनी । भीतिः पर्यायमूढानां नात्मतत्त्वैकचेतसाम् ॥ ४९५ ॥ अर्थ — पर पदार्थों में आत्माका अनुभव होनेसे भय होता है विना पर पदार्थ में आपा समझे भय किसी प्रकार नहीं हो सक्ता इसलिये जो वैभाविक पर्याय में ही मूढ़ हो रहे हैं उन्हींको भय लगता है । जिन्होंने आत्मतत्त्वको अच्छी तरह समझ लिया है उन्हें कभी भय नहीं लगता । भावार्थ - कर्मके निमित्तसे होनेवाली शारीरादिक पर्यायोंको ही जिन्होंने आत्म तत्त्व समझ लिया है, उन्हें ही मरने, जीने आदिके अनेक भय होते हैं, परन्तु जो आत्मतत्त्वयथार्थताको जानते हैं उन्हें पर - शरीरादिमें बाधा होनेपर भी उससे भय नहीं होता । ततो भीत्यानुमेयोस्ति मिथ्याभावो जिनागमात् । सा च भीतिरवश्यं स्याद्धेतुः स्वानुभवक्षतेः ॥ ४९६ ॥ अर्थ — इसलिये भय होनेसे ही मिथ्या - भावका अनुमान किया जाता है । वह भय आत्मानुभवके क्षयका कारण है । यह बात जिनागमसे प्रसिद्ध है । भवार्थ - बिना स्वात्मानुभवके क्षय हुए भंय होता नहीं । इसलिये भयसे स्वात्मानुभूतिके नाशका अनुमान करलिया जाता है। जिनके स्वानुभव है उन्हें भय नहीं लगता । निष्कर्ष -- अस्ति सिद्धं परायत्तो भीतः स्वानुभवच्युतः । स्वस्थस्य स्वाधिकारित्वान्नूनं भीतेरसंभवात् ॥ ४९७ ॥ अर्थ - इसलिये यह बात सिद्ध हुई कि जो भय सहित है और पराधीन है, वह आत्मानुभवसे गिरा हुआ है । परन्तु जो स्वस्थ है वह आत्मानुभवशील है, उसको भीति (भय) का होना असंभव ही है । भावार्थ - इस कथन से यह नहीं समझ लेना चाहिये कि सम्यग्दृष्टीको भय लगता ही नहीं। क्या सम्यग्दृष्टी शेरसे नहीं डरेगा ? क्या सर्पसे नहीं डरेगा ? अवश्य डरेगा । परन्तु जिन भीतियोंके कारण मिथ्यादृष्टी सदा व्याकुल रहता है, उनसे सम्यग्दृष्टी सर्वथा दूर है । उन भीतियोंके नाम आगे आयंगे।
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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