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________________ - अध्याय । सुबोधिनी टीका। वस्तुका बोध कहलाता है। इसलिये ज्ञान साकार है और दर्शन निराकार है। दूसरी बात यह भी है कि ज्ञानमें वस्तुके विशेषण, विशेष्य सम्बन्धका निर्णय होता है इसलिये वह साकार है ओर इतर गुण निराकार हैं। तथा ज्ञान अपने स्वरूपका भी ज्ञान कराता है इसलिये साकार है, इतर गुण अपना भी स्वरूप नहीं प्रगट करसक्ते इसलिये निराकार हैं। यहां पर दर्शन (यह दर्शन सम्यग्दर्शनसे सर्वथा भिन्न है) का एक दृष्टान्त मात्र दे दिया है। वास्तवमें ज्ञानको छोड़ कर सभी गुण अनाकार हैं। शानको छोड़कर सभी गुण निराकार हैंज्ञानादिना गुणाः सर्वे प्रोक्ताः सल्लक्षणाङ्किताः। सामान्यादा विशेषाद्वा सत्यं नाकारमात्रकाः ॥ ३९५॥ अर्थ-ज्ञानको छोड़कर बाकीके सभी गुण सन्मात्र हैं। चाहे वे सामान्य गुण हो, चाहे विशेष गुण हों सभी आकार रहित हैं अर्थात् निर्विकल्पक हैं। भावार्थ-ज्ञानके सिवा सभी गुण अपनी सत्ता मात्र रखते हैं, ज्ञान ही एक ऐसा है जो अपनी सत्तासे अपना और दूसरोंका बोध कराता है इस लिये यही साकार है। अनाकारताका फल--- ततो वस्तुमशक्यत्वात् निर्विकल्पस्य वस्तुनः । तदुल्लेखं समालेख्य ज्ञानद्वारा निरूप्यते ॥ ३९६ ॥ अर्थ-इस लिये जो निर्विकल्पक वस्तु है, उसका कथन ही नहीं हो सकता है वह वचनके अगोचर है । इस लिये उसका उल्लेख ज्ञानद्वारा किया जाता है। . ज्ञानका स्वरूपस्वापूर्वार्थद्वयोरेव ग्राहकं ज्ञानमेकशः। नात्र ज्ञानमपूर्वार्थो ज्ञानं ज्ञानं परः परः ॥ ३९७ ॥ अर्थ--निन और अनिश्चित पदार्थ, दोनोंके ही स्वरूपका ग्राहक ज्ञान है, वह दोनोंका ही एक समयमें निश्चय कराता है, परन्तु अनिश्चित पदार्थका निश्चय कराते समय ज्ञान स्वयं उस पदार्थरूप नहीं होजाता है । ज्ञान ज्ञान ही रहता है और पर पदार्थ पर ही रहता है। भावार्थ-जिस प्रकार दीपक अपना स्वरूप भी स्वयं दिखलाता है और साथ ही इतर घटपटादि पदार्थोंको भी दिखलाता है। उसी प्रकार ज्ञान भी अपने स्वरूपका भी बोध कराता है साथ ही पर पदार्थोंका भी बोध कराता है । परन्तु पर पदार्थका बोध कराते समय वह ज्ञान स्वयं पर पदार्थ रूप नहीं है वह पदार्थाकार होते हुए भी अपने ही स्वरूपमें है। पदार्थाकार होना ज्ञानका निज स्वरूप है। - ० १५
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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