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________________ م م م م س م २६६ (१३) विषय। पृष्ठ। विषय। पृष्ठ 1 संयम धारण करनेका उपदेश .... १८९ सम्यक्त्वके भेद.... .... .... २४२ यतियोंके मूलगुण .... .... १९० | चारों बंधोंका स्वरूप .... .... २४३ उत्तर क्रियारूप व्रतोंका फल .... १९१ अनुभाग बंधमें विशेषता.... .... २४८ व्रतका लक्षण .... .... .... १९१ | चेतना तीन प्रकार हैं .... .... २४९ व्रतका स्वरूप .... ..... सर्व पदार्थ अनंत गुणात्मक हैं .... भावहिंसासे हानि .... .... १९३ वैभाविक शक्ति.... परका रक्षण भी स्वात्म रक्षण है १९३ | विकृतावस्थामें वास्तवमें जीवकी। शुद्ध चारित्र ही निर्जराका कारण है १९४ हानि है .... .... .... २५३ यथार्थ चारित्र .... .... .... पांच भावोंके स्वरूप .... .... सम्यग्दर्शनका माहात्म्य .... .... गतिकर्मका विपाक .... .... बंध मोक्ष व्यवस्था .... .... मोहनीय कर्मके भेद .... .... उपगृहन अंगका लक्षण..... .... अज्ञान औदयिक नहीं है .... कर्मों के क्षयमें आत्माकी विशुद्धि.... कर्मों के भेद प्रभेद .... .... स्थितिकरण अंगका लक्षण .... एक गुण दूसरेमें अंतर्भूत नहीं है २६९ स्वोपकारपूर्वक परोपकार औदयिक अज्ञान .... .... २७३ वात्सल्य अगका लक्षण.... .... २०९ अवुद्धिपूर्वक मिथ्यात्वकी सिद्धि २७५ प्रभावना अंगका स्वरूप .... २१० आलापोंके भेद..... .... .... बाह्य प्रभावना .... .... .... बुद्धिपूर्वक मिथ्यात्वके दृष्टान्त .... २८० किन्हीं नासमझोंका कथन .... नोकषाकके भेद.... .... .... २९० ध्यानका स्वरूप .... .... | नाम कर्मका स्वरूप .... .... २९२ छद्मस्थोंका ज्ञान संक्रमणात्मक है.... द्रव्य वेदसे भाव वेदमें सार्थकता उपयोगात्मक ज्ञानचेतना सदा नहीं आती है.... .... .... २९४ नहीं रहती .... .... .... २१९ अज्ञानका स्वरूप.... .... .... सम्यक्त्वकी उत्पत्तिका कारण .... २२६ | सामान्य शक्तिका स्वरूप ३०० राग और उपयोगमें व्याप्ति नहीं है २२८ वेदनीय कर्म सुखका विपक्षी नहीं है ३०१ राग सहित ज्ञान शांत नहीं है.... असंयत भाव .... .... .... बद्धिपूर्वक राग .... .... .... २३५ संयमके भेद व स्वरूप .... .... ३०२ अबुद्धिपूर्वक राग .... .... २३६ / कषायोंका कार्य . ३०५ ज्ञान चेतनाको राग नष्ट नहीं कर कषाय और असंयमका लक्षण .... सक्ता है .... .... .... २३८ असिद्धत्व भाव.... .... .... ३०९ सिद्धान्त कथन.... .... .... २३९ | सिद्धत्व गुण .... .... .... २७८ २९७ اسم سم سم سم م سه . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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