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________________ अध्याय । सुबोधिनी टीका। । ८३ अर्थ-यह सम्यग्दृष्टि भोगोंका सेवन भी करता है, तो भी उनका सेवक नहीं समझा जाता क्योंकि राग विहीन पुरुषका इच्छाके बिना किया हुआ कर्म उसके रागके लिये नहीं कहा जा सकता। सम्यग्दृष्टीकी चेतनाअस्ति तस्यापि सदृष्टेः कस्यचित्कर्मचेतना । अपि कर्मफले सा स्यादर्थतो ज्ञानचेतमा ॥ २७५ ॥ अर्थ-किसी किसी सम्यग्दृष्टीके कर्मचेतना और कर्मफल चेतना भी होती है, परन्तु वास्तवमें वह ज्ञान चेतना ही है । (2) x ज्ञानचेतना क्यों है-- चेतनायाः फलं बन्धस्तत्फले वाऽथ कर्मणि । रागाभावान्न वन्धोस्य तस्मात्सा ज्ञानचेतना ॥२७६ ॥ अर्थ-चाहे कर्मचेतना हो अथवा कर्मफलचेतना हो, दोनोंका ही फल वन्ध है अर्थात् दोनों ही चेतनायें बन्ध करनेवाली हैं । सम्यग्दृष्टीके रागका ( अज्ञानभावका ) अभाव होचुका है, इस लिये उसके बन्ध नहीं होता, इसी लिये वास्तवमें उसके ज्ञानचेतना ही है। भावार्थ-कोई यह शङ्का कर सकते हैं कि बन्ध तो दशवे गुणस्थान तक होता है क्योंकि वहां भी सूक्ष्म लोभका उदय है, फिर सम्यग्दृष्टीके लिये रागके अभावसे बन्धका अभाव क्यों बतलाया गया है ? उत्तर-यद्यपि सम्यग्दृष्टीके राग होनेसे बन्ध होता है, परन्तु जिन मोहित अज्ञान परिणामोंसे मिथ्यादृष्टीके बन्ध होता है वैसा सम्यग्दृष्टीके नहीं होता। सम्यग्दृष्टीका राग, मिथ्यात्वमिश्रित नहीं है इसी लिये उसके उसका अभाव बतलाया गया है। ग्राह्य और आग्राह्यअस्ति ज्ञानं यथा सौख्यमैन्द्रियं चाप्यतीन्द्रियम् । आद्यं यमनादेयं समादेयं परं यम् ॥ २७७॥ अर्थ-जिस प्रकार इन्द्रियजन्य सुख और अतीन्द्रिय सुख होता है, उसी प्रकार इन्द्रियजन्य ज्ञान और अतीन्द्रिय ज्ञान भी होता है। इन दोनों ही प्रकारोंमें आदिके दो - सम्यग्दृष्टि के पहले ज्ञान चेतना ही बतलाई है, परन्तु यहांपर उसके कर्मचेतना और कर्मफल चेतना भी बतलाई है। आगे भी कर्म और कर्मफलचेतना सम्यग्दृष्टीके बतलाई है। मालूम होता है कि उसके चारित्रमोहनीयकी अपेक्षासे ये दो चेतनायें कहीं गई हैं। वास्तवमें तो उसके आकांक्षा न होनेसे ज्ञानचेतना'ही है ! सम्यग्दृष्टि के मुख्यतासे ज्ञानचेतना ही कही गई है और बाकी. की दोनों चेतनाओंका अधिकारी मियादृष्टि कहागया है।
SR No.022393
Book TitlePanchadhyayi Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherGranthprakash Karyalay
Publication Year1918
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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