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________________ 666 प्रमाणवचनम् पुटम् 604 पारम्पर्येण पर्याय एवं पर्यत्यज पश्चाद्वजन्तो पातालदेशाः पारमार्थ्यं विना पिशाच इव पुनरपरं तत्वे पुमान् स्त्रिया पुराणकारस्य हि पुरुषस्य दर्श पुंसो ज्ञकर्तृ पूर्ववच्चैष पूर्ववद्वा पूर्वसम्बन्ध पूर्वसंविदिता पुटम् । प्रमाणवचनम् 379 | पृथिव्यप्सु लीयते 165 | पृथ्व्यादिषु 582 पृथिव्ये शरीरं 583 पैतामहंच | पौलिशकृतः 422 पोलिशरोमक 83 प्रकृतिप्रभवं 192 प्रकृतिपुरुष 291 प्रकृतिविकृतयः 605 प्रकृतेः 133 150 266 223 प्रख्याप्रवृत्ति 4191 प्रतिदिनमधः 320 प्रतिविषयाध्यव प्रतिपुरुषभिन्न 369 प्रतिभिन्नसमे प्रत्यक्षण विरुद्धश्च प्रत्येतव्यस्य प्रधानं तत्वमु 440 290 255 611 612 612 95 214 124 101 213 276 458 285 592. 266 461 196 414 79 153 159 316 375 94 544 81 69 356 336 590 413 पूर्वपर्यनुयो पूर्वाभिमुखे पूर्वाभिमुखं पूर्वोक्तेन पूर्व नैव स्वभावतः पृथक्प्रतिपत्ति पृथ्व्यादिपञ्च पृथिवी वायुः पृथिवी शरीरं पृथिव्यप्सु लीयते 314 150 177 प्रधाने भाग प्रध्वंसो भवति प्रबोधभयतो प्रभाभास प्रमाणं कारणं प्रमातृप्रमेययोः 255 153 155 171
SR No.022392
Book TitleTattva Muktakalap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD Srinivasachar, S Narasimhachar
PublisherMysore Government Branch
Publication Year1933
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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