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________________ नरेन्द्र छंद (जोगीरासा) सूखे गीले मिट्टीके दो, पिंड भीतिपै मारो। चिपक रहेगो गीला गोला, यह दृष्टान्त विचारो॥ कामलालसी गीले गोले, जगमें उलझ रहे हैं। हैं विरक्त ते शुष्क पिंड सम, पद उतकृष्ट लहे हैं १९॥२० आयो। तणकटेहि व अग्गी लवणसमुद्दो गईसहस्सेहिं । ण इमो जीवो सक्को तिप्पेउं कामभोगेहिं ॥२१॥ दोहा। सहस सरित" लवणदधि, तृण ईंधनतें आग । ज्यों न अघावै जीव त्यौं, काम भोगमें लाग ॥२१॥ भुत्तूणवि भोगसुहं सुरणरखयरेसु पुण पमाएण । पिजइणरएसु भवे कलकल तउ तंबपाणाई॥२२॥ सोरठा। भोगे विषय कषाय, सुर नर खगगतिमें जिया। तातें देत पियाय, ताम्र औंटकर नरकमें ॥ २२॥ को लोभेण ण णिहओ कस्स ण रमणीहिं भोलिअं हिययं । को मञ्चुणा ण गहिओ को गिद्धो णेव विसएहिं ॥ २३ ॥
SR No.022372
Book TitleIndriya Parajay Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhulal Shravak
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1912
Total Pages38
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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