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________________ [४] ॥ ५७ ॥ अछहास सोल बायरि, सुहुमे दस वेबसंजलणति विणा ॥ खीणुवसंति अलोला, सजोगि पुव्वुत्तसगजोगा ॥ २७ ॥ अपमत्ता सत्त-मीसथपुवबायरा सत्त ॥ बंध बस्सु. हुमो ए-ग मुवरिमाऽबंधगाऽजोगी ॥ ५ ॥ आसुहुमं संतुदए, अवि मोह विणु सत्त खा. (म ॥ चउ चरिमागे अह उ, संते उपसंति सत्तुदए ॥ ६७ ॥ नरंति पमत्तता, सग? मीसह वेअबाउ विणा ॥ छग अपमत्ताइ तथो, न पंच सुहुमो पणुवसंतो॥६१॥ पण दो खीण 3 जोगीणुदीरगु अजोगि थोत्र उवसंता ॥ संख गुण खीण सुहुमा, नियहिश्यपुत्व सम अहिया ॥ ६॥ जोगिअपमत्त श्यरे, संखगुणा देस. सासणामीसा॥अविरइ अजोगिमिच्छा, असंख चउरो ऽवे पंता ॥ ६३ ॥ उवसमखयमीसोदय परिणामा पुनव हार गवीसा ॥ तिअनेथ सन्निवाश्य, सम्मं चरणं पढमभावे ॥ ६४ ॥ बीए केवलजुअलं, सम्मं दाणाश्लद्धि पण च
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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