SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २४ ] • संपइ तुम्ह जत्तस्स, दंडगपयन मणनग्गे । हययस्स ॥ दंगतिय विरय सुबह, लहु मम दिंतु मुखखयं ॥ ४१ ॥ सिरि-जिहंस मुणीसर- रज्जे सिरि-धवल चंदसी सेण ॥ गजसारेण बिहिया, एसा वित्ति अप्पहिया ॥ ४२ ॥ ॥ इति श्री दमकप्रकरणं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ श्री लघु (जंबूद्वीप ) संघयण प्रारयते ॥ ४ ८ नमिय जिणं सव्वन्नुं, जगपुज्जं जगगुरुं महावीरं ॥ जंबुद्दीव पयत्थे, बुच्छं सुत्ता सपरदेऊ ॥ १ ॥ खंडा 'जोय 'वासा, पव्त्रय "कूमा यतित्थ "से ॥ विजय दइ "सबिलाश्रो, पिडेसिं होइ संघयणी ॥ २ ॥ न असयं खंडणं, जरहपमाणेण भाईए लख्खे अड्वा उअसयगुणं, भरमाणं दवइ लख्खं ॥ ३ ॥ ' विग १ अहंवेगखंडभर हे० पीठा०
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy