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________________ २१७ ॥ अथ श्री दशवैकालिके प्रथमा रइवका चूलिका ॥ श्ह खबु जो पवश्एणं उत्पन्न उक्खेणं सं. जमे अरश्समावन्नचित्तेणं श्रोहाणुप्पेहिणा अणो हाइएणं एव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाजूआई श्माई अडारस गणाई सम्मं संपडिलेहिअवाई जवंति ॥ तं जहा-हं जो उस्सना उप्पजीवी ॥१॥ बहुसग्गा इत्तरिया गिहीणं कामनोगा ॥२॥ जुजो अ सायबहुला मणुस्सा ॥ ३ ॥ श्मे थ मे मुक्खे न चिरकालोवगाइ नविस्स ॥४॥ उमजणपुरकारे ॥५॥ वंतस्स य पमिआयणं ॥६॥ अहरगश्वासो वसंपया ॥७॥5. रहे खलु नो गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं ॥ ॥ यंके से वहाय हो ॥ए ॥ संकप्पे से वहाय होई॥१०॥ सोवकेसे गिहवासे, निरुवकेसे परिआए॥१९॥ बंधे गिहवासे, मुक्खे परिआए॥१२॥ सावजे गिढवासे, अण.
SR No.022371
Book TitlePrakaran Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagardas Pragjibhai
PublisherNagardas Pragjibhai
Publication Year1932
Total Pages230
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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