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[११] संवर-मुक्किटं, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ तया धुणई कम्म रयं, अबोहि कसं कर्म ॥२०॥ जया धुणई कम्म रयं, अबोहि कसं कम्॥ तया सव्वत्तगं नाणं, दसणं चाजिगबई ॥१॥ जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छई। तया लोग-मलोगं च; जिणो जाण केवली ॥२॥ जया लोग-मलोगं च, जिणो जाणश् केवली॥ तया जोगे निलंनित्ता, सेलेसिं पविजई ॥२३॥ जया जोगे निमित्ता, सेलेसिं पमिवजई ॥ तया कम्म खवित्ताणं, सिम् िगच्छश् नीरयो ॥२४॥ जया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गच्छइ नीरयो। तया लोग मत्थयत्थो, सिको हवश्सासयो॥२५॥
___ ( आर्यागीतिवृत्तम्) सुहसायगस्स समणस्स, सायाजलगस्स निगामसाश्स्स उच्छोलणापहोयस्स,उल्लहा सुगश्तारिसगस्स ॥ २६ ॥ तवो गुणप्पहाणस्त, उज्जुमर खंति संजभरयस्स ॥ परीसहे जिणंतस्स सुसहा, सुगश्तारिसग्गस्स,॥ २७ ॥ पच्छावि ते पयाया,